7 कारण जिनसे बिहार बना एक गरीब राज्य- डॉ. विवेक बिन्द्रा

हर सदी में कोई एक ऐसा इंसान आता है, जो अपने जज्बे से दुनिया का रुख बदल देता है। डॉ. विवेक बिन्द्रा एक ऐसे शख्स है, जो सिर्फ फुटपाथ पर डिक्शनरी बेच कर पढ़ाई का खर्चा निकाला और आज बड़े-बड़े बिजनेस आइकन उनसे कंसल्ट कर के डिसीजन लेते हैं।

Unfit as a trainer (ट्रेनर के रूप में अनुपयुक्त) बोलकर कंपनी ने उनको रिजेक्ट किया था। आज वो एशिया का नंबर वन मोटिवेशनल स्पीकर का अवार्ड जीत चुके हैं।

ऐसे बिजनेस कोच जिनकी लर्निंग अपनाकर कितने ही डूबते हुए बिजनेस और स्टार्टअप अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं, और आज लाखों-करोड़ों में खेल रहे है।

डॉ. विवेक बिन्द्रा अपने यूट्यूब चैनल के माध्यम से बिहार का केस स्टडी कर के 7 बातें बताएं हैं – कि क्यों बिहार इतना पीछे रह गया और क्या किया जाए ताकि बिहार आगे बढ़ सकता है।

उन्होंने इस विषय को गंभीर समझा है, क्योंकि सबसे बड़ी ग्रोथ वही होती है जहां सबसे ज्यादा कमजोरियां दिखाई पड़ती हैं। देश के अंदर सबसे बड़ा ग्रोथ वही होगी जहां पर ग्रोथ का सबसे बड़ा फ़ासला बाकी बचा हो।

बिहार एक ऐसा राज्य है जहां पर ग्रोथ का सबसे बड़ा फासला है, जहां पर ग्रोथ की निश्चित रूप से बहुत तेजी से बहुत ज्यादा आवश्यकता है। जो हमारे 32 से 33 राज्य है, हमारे देश के अंदर यूनियन टेरिटरी मिला करके। इसके अंदर बिहार का जो per capita income है, वह लोवेस्ट है। क्यों है ऐसा ₹31,000 के आसपास सलाना इनकम एक व्यक्ति की बिहार के अंदर। ऐसा क्यों है, क्या कारण है, कि आज एवरेज इनकम बिहार का इतना निचे चला गया है।

कुछ राज्य होते हैं, जो भारत की इकोनामी, भारत की स्ट्रैंग्थ को आगे लेकर जाते हैं और कुछ राज्य होते हैं, जो उसकी ग्रोथ, डेवलपमेंट को नीचे घसीटते जा रहे है।

Fruits तब तक नहीं मिलेंगे, जब तक roots ठीक नहीं होंगे।

1) भौगोलिक नुकसान (Geographical disadvantage) एक तो यह लैंड लॉक स्टेट है। लैंड लॉक स्टेट होने के कारण इसके पास एक इंटरनेशनल ज्योग्राफिक लोकेशन का एक एडवांटेज नहीं है। कोस्टल रीजन जैसे- गुजरात, महारास्ट्र जहां से इंटरनेशनल बिजनेस बहुत तेजी से होती है। सी के द्वारा, बंदरगाह के द्वारा। लेकिन बिहार को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है। अगर खुलता भी है तो इंटरनेशनल साइड में नेपाल पे है। हम तो डूबेंगे सनम तुम्हें भी ले डूबेंगे।

इसके कारण ग्लोबल एक्सेस मिलता भी नहीं है, ट्रांसपोर्टेशन कॉस्ट बढ़ जाती है। बिहार का एक रीजन है जहां सूखा पड़ जाता है, दूसरा रीजन है जहां बाढ़ ज्यादा आ जाती है। अब क्योंकि इसके कारण लोगों को बिहार छोड़कर भागना या निकलना पड़ता है, रोजी रोटी के लिए।

2) कोई बड़ा उद्योग नहीं (No major industry) बिहार के अन्दर कोई बड़ी इंडस्ट्री है ही नहीं। कोई बड़ी कंपनी इस समय इन्वेस्टमेंट बिहार के अंदर करना ही नहीं चाहती। बंगाल से, यूपी से, एमपी से ट्रक भड़-भड़ के माल आता है। लेकिन वो ट्रक वापस खाली जाता है। बिहार से कुछ माल नहीं जा रहा। बिहार बाहर से माल ले रहा है, दे नहीं रहा।

See also  Ragnarok: How Norse Mythology is Relatable in Today’s Times

पहले शुगर मिल्स और फर्टिलाइजर के प्लांट हुआ करते थे इकोसिस्टम कमजोर होने से लॉस करना शुरू किया और वो भी बंद हो गई। लोग छोड़ के बाहर जाने लगे। नहले पर दहला तब हुआ जब झारखंड बिहार से अलग हुआ जैसे ही झारखंड बिहार से अलग हुआ मिनरल्स रिच कंपनी, सारे बड़े कॉर्पोरेट जितनी भी माइनिंग होनी थी वह सब झारखंड में निकल गया। बोकारो हाथ से निकल गया, टाटा जमशेदपुर हाथ से निकल गया अब तो कुछ मिनरल्स भी नहीं बचा बिहार के हाथ तो बिहार बेचारा दब गया।

3) माल ढुलाई समीकरण नीति Freight equalisation policy के हिसाब से झारखंड बिहार एक ही था। उस समय जितना भी मिनरल निकलता था उसको ट्रांसपोर्ट करके अपने स्टेट में लेने के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट ट्रांसपोर्टेशन पर सब्सिडी देती थी। वह बड़ी कंपनी, इंडस्ट्री लोकेशन और कोस्टल ट्रेड वहीं रह कर अपनी कंपनी रन करती हैं। इनको प्रोत्साहन देना चाहिए था, कि तुम बिहार में ही अपनी कंपनी सेट करो पर इन्होंने ट्रांसपोर्टेशन के ऊपर प्रोत्साहन दे दिया। उठाओ माल बिहार से लेकर बाहर निकल लो, सब आए माल उठाएं बिहार से और बाहर निकल गए।

अगर वही फैक्ट्री लगा दिए होते तो बिहार में आ जाती रोजगार इधर का कल्चर ही बदल जाता। यहां पर शिक्षा और रोजगार दोनों कम है, इसलिए इनकी नेशनल कमाई के मुकाबले बिहार की ऑनिंग बहुत कम रह गई है। मिनरल रिच स्टेट होने का फायदा होते हुए भी, इसको 1993 तक लूटा गया है।

4) कुआ का मेडक, कुए को समुंद्र समझता है। (Frog in the pond think its an ocean) बिहार में यह कल्चर बन गया है कि बिहार के लोग सिविल सर्विस को ही सब कुछ समझते हैं। यह सोचते हैं कि सरकारी नौकरी में दहेज ज्यादा मिलता है। उनके लिए रैंक लिस्ट तय करती है, दहेज में इतना पैसा मिलेगा। इनको क्या लगता है सरकारी नौकरी मिल गई आईएएस ऑफिसर बन गया टेबल के ऊपर तो लेगा टेबल के नीचे से भी लेगा।

यह देखो ये बापु है आईएएस ऑफिसर है। बिजली तो आ नहीं रही है, लेकिन सरकारी जरनेटर पर इनके घर में 24 घंटा बिजली रहती है। तो एक एस्पिरशन सोच बनता चला गया पूरे प्रदेश के अंदर। अब अगर कोई व्यापारी करने निकले भी तो वह क्या बोलते हैं ओए चौबे के छब्बे बनने निकले हो।

एक बिहारी आदमी के लिए क्या कहते हैं- कहीं सूखा, कहीं बाढ़, ना मिले नौकरी, ना व्यापार, तो सरकारी नौकरी सब कुछ है।

ऐसे बहुत सारे चीज है, जो हमारे देश को मार डाले है। उसमें से एक आता है- डोरी कैलकुलेटर। जहाँ पर आप अपना उम्र लिखो, कास्ट लिखो, उसके बाद प्रोफेशन कैसा है, मंथली सैलरी कितनी है, कहां पर काम कर रहा है, स्किन कलर कैसा है, हाइट कितनी है, पहली शादी है की दूसरी शादी। ये सब लिखने के बाद वो आपको बता देगा की आपको दहेज में कितना मिलेगा।

See also  स्वच्छ भारत अभियान

आज भी हमारे देश में ऐसे संस्कार है कि दहेज की कमाई पर लार टपकती है, कि तेरे को कितना मिला तेरे-को कितना मिला।

5) बिहार जाति की राजनीति के लिए प्रसिद्ध है (Bihar is famous for caste politics ) बिहार मैं जाति की राजनीती ज्यादा चलती है, विकास की राजनीती कम चलती है।

हर चीज के फायदे नुकसान होते हैं। जाति राजनीती का कुछ फायदा है। फायदा यह है, कि पहले यहां पर जो ऊंची जाति के लोग होते थे वे नीच जाति वालों को बहुत दबाते थे पैसौ से। जाती के राजनीती के कारण यह छोटे-छोटे जाति के लोग इकट्ठे हुए और इन लोगों ने अपने आप को ऊंची जाति के लोगों के सामने अपने आप को ताकत खरा किया।

तो कुछ फायदा होता है। पर जब 91 के बाद आज़ादी आया देश के अंदर उस समय बाकी सारे राज्य सोचते थे, कि हमारे को इंटरनेशनल फंड मिले अपने फॉरेन इन्वेस्टमेंट आ जाए अपने आज़ादी का फायदा उठाए, धंधा व्यापार बड़े करें। और बिहार के लोग कास्ट के चक्कर में फंसे रह गए। यहां पर ग्रोथ पॉलिटिक्स हुई नहीं यहां पर डेवलपमेंट पॉलिटिक्स की बात नहीं हुई कास्ट के चक्कर में बिहार एक अनस्टेबल गवर्नमेंट की तरह रह गई। 70 साल में 40 बार तो सत्ता बदली, 23 अलग-अलग मुख्यमंत्री आए 70 साल के अंदर। एक मुख्यमंत्री को एवरेज एक से डेढ़ साल से ज्यादा मिला नहीं यहां पर बात केवल जात- पात की ही होती रह गई डेवलपमेंट नहीं हुआ। वास्तव मे क्या सोचना चाहिए कि केवल मेरी कास्ट नहीं अगर पूरे राज्य में खुशहाली आएगी तो फायदा सबका होगा। जब पूरा बिहार ग्रोव्थ करेगा तभी फायदा होगा -उसको बोलते हैं इंक्लूसिव ग्रोथ।

6) जनसंख्या और साक्षरता वृद्धि (Population and literacy growth) बिहार का पापुलेशन ग्रोथ रेट और लिटरेसी ग्रोथ रेट दोनो असंतुलन है। लिटरेसी बढ़ नहीं रही है फर्टिलिटी रेट सबसे ज्यादा है। फर्टिलिटी रेट का मतलब है- एक माँ एवरेज सबसे ज्यादा अपने जीवन काल में बच्चों को जन्म बिहार की माँ देती हैं। बाकी बहुत सारे राज्य हैं, जहां पर पढ़े-लिखे राज्य है, वहां पर एक माँ 2 से ज्यादा बच्चों को नहीं जन्म देती हैं और बिहार का सबसे ज्यादा है।

बिहार में भी दो हिस्से हैं। एक जहां पर बिल्कुल पिछड़ी हुई जाती है, जहाँ बिल्कुल पढ़ाई नहीं किया जाता, जहां बिल्कुल शिक्षा नहीं है, ज्ञान नहीं है । वहां एक माँ 4-5 बच्चों को जन्म दे रही हैं, और जहां थोड़ी बहुत पढ़ाई करी गई है वहां तीन बच्चों को इसके कारण क्या हुआ पापुलेशन बहुत ज्यादा पर एजुकेशन बहुत कम।

लीटरेसी रेट 63% के नजदीक रह गया। बिहार का लिटरेसी रेट यानी कि जो पढ़ाई का शिक्षा का रेट है वह सबसे कम है। नालंदा यूनिवर्सिटी जो विश्व की सबसे पहली और पॉपुलर यूनिवर्सिटी होने के बावजूद, सबसे ज्यादा IAS उत्पन्न होने के बावजूद, यहा का एजुकेशन का एवरेज स्तर वो अच्छा नहीं रहा। जो बहुत ही मेधावी छात्र है, वो सबको छोड़ के आगे निकलने की कोशिश कर रहे है, बिहार के अन्दर लेकिन वो कोशिश बहुत कम लोगो के अन्दर है। और बहुत सिमित जगह पर है। उसके नए-नए अवेनुएस नहीं खोले जा रहे है।

See also  वेद के बारे में जानिए

7) संपादन और रोजगार सीधे आय के लिए आनुपातिक है (eduation and employability is directly proportional to earnings) पापुलेशन से असर आता हैं, एजुकेशन पर एजुकेशन से असर आता है रोजगार पर। अब क्योंकि पापुलेशन बहुत ज्यादा है, एजुकेशन उतनी हो नहीं पा रही कवर और उसके कारण रोजगार नहीं आ रही है। क्योंकि skill building actually बिहार के अंदर जितनी होनी चाहिए उतनी हुई नहीं।

Per capita income के चार्ट को देखेंगे तो 1950 से लेकर 1951 तक बिहार का ₹204 था और पूरे देश का ₹265, 2013 तक बिहार बढ़कर 28,000 तक पहुंचा लेकिन इतने में भारत बढ़कर 75,000 पहुंच गया।

जिस स्पीड से per capita income बढ़ती है, उससे कई गुना स्पीड All India Average आगे बढ़ जाती है। उनमें भी कुछ स्टेट है, जो बहुत तेजी से आगे आ गए जैसे कि गोवा है, और यूनियन टेरिटरीज में दिल्ली है, सिक्किम, हर्यना, केरला, महाराष्ट्र, कर्नाटक यहां पर एवरेज आदमी कि कमाई बहुत अच्छी है, लेकिन बिहार में एवरेज इनकम केवल 31,000 रह गई साल की।

सिर्फ समस्या ही नहीं है, बहुत सारी अवसर भी है। लेकिन बिहार के अंदर एजुकेशन पर फोकस एटीट्यूड का बदलाव बहुत जरूरी है।

  • अनिल अग्रवाल वेदांत रिसोर्सेज लिमिटेड के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। वेदांत Top 10 Indian rich people के लिस्ट में नाम आता है। यह बिहार से निकल के आए हैं।
  • रविंद्र कुमार सिन्हा- security and intelligence services भारतीय जीवविज्ञानी और पर्यावरणविद् पद्मश्री से सम्मानित हैं।

ऐसे बहुत सारे व्यापारी को जरूरत है जो रोजगार जनरेट करके दे सके। वह सारी बिजनेस ग्रोथ अवसर उत्पन्न करनी सबसे ज्यादा जरुरी है।

विदेशों की आप बहुत बात करते हैं, आज हमारे देश में बैठे हमारे भाई बंधुओं के साथ डिस्क्रिमिनेशन हो रहा है-भेदभाव हो रहा है। बिहारी नाम को लोग गाली कि तरह इस्तेमाल करते है।

कहते है 1 बिहारी 100 बिमारी। इसलिए हर भारतीयों को यह समझना जरूरी है कि एक बिहारी सौ बीमारी नहीं एक बिहारी सौ पर भारी हो सकता है। क्यौंकि बिहार में सबसे ज्यादा मेहनती लोग पाएँ जाते है।

उन्होंने अंत में यही सुझाव दिया कि- बिहार में अगर लर्निंग पर फोकस किया जाए तभी अर्निंग बढ़ेगी।