दिवाली आनी रोशनी का त्योहार। दिवाली अर्थात दीपावली। यह हर वर्ष शरद ऋतु में मनाया जाता है। दिवाली भारत में मनाए जाने वाला सबसे बड़ा त्यौहार है। यहां मुख्य त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार अंधकार पर रोशनी के विजय को दर्शाता है। यह एक सामाजिक व धार्मिक त्योहार भी है। इसे दीपोत्सव यानी दीपों का त्योहार भी कहते हैं। इसे सीख बौद्ध जैन तथा बंगाली भी मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इसे महावीर के मोक्ष के आधार पर मनाते हैं। बौद्ध धर्म के लोग इसे बंदी छोड़ दिवस के नाम से मनाते हैं। वही बंगाली में यह काली पूजा के नाम से प्रचलित है।
तो आइए अब बात करते हैं दिवाली के शुभकामना संदेश के बारे में। दिवाली की शुभकामनाएं देने के लिए आपको हर कोई पिक्चर मैसेज शायरी वॉलपेपर भेज दे ही होंगे। या फिर आप भी अपने व्हाट्सएप स्टोरी फेसबुक स्टोरी इंस्टाग्राम स्टोरी में फोटो इमेज पोयम्स s.m.s. राइंस अपनी स्टोरी में पोस्ट करते ही होंगे या फिर लोगों को भेजते ही होंगे आइए आपको भी 20 शुभकामना संदेश और ग्रीटिंग्स के बारे में बताते हैं।
निम्नलिखित दिवाली शुभकामना संदेश:
1) “दीपक की ज्योति से आपको जीवन में उजाला मिले दिवाली की मिठाईयों से ज्यादा रिश्तो में मिठास बने इस दीपावली लक्ष्मी जी आपसे इतने खुश हो के हर दिन, हर पल, हर लम्हा आपका हर काम बने दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं”
2) “रौशन हो दीपक और सारा जग जगमगाए,
लेके साथ सीता मैया को राम जी हैं आये,
हर शहर लगे मनो अयोध्या हो,
आओ हर द्वार हर गली हर मोड़ पे हम दीप जलाएं!!”
Wishing You a Very Happy Diwali…
3) “जगमग दिये की तरह, जलते रहो तुम सारी उम्र
मन में छुपे अंधेरों को, खलते रहो तुम सारी उम्र”
4) “दिवाली के पटाखों की तरह, दर्द के छाले फोड़ दो
हो बुराई जितनी भी मन में, आज तुम सब छोड़ दो”
5) “रौशनी की रात आई है, खुशियों की सौगात लाई है
देखो आज ज़मीन पर यूँ, सितारों की बारात आई है”
6) “आओ बनाएं एक नया जहां, ना रहे कोई मजबूर जहाँ
जगमगाते रहे यूँ ही हम सब, दुखों का हो फिर दूर जहां”
7) “दीपावली के मौके पर, स्वच्छता की शपथ ले हम
अपने प्यारे भारतवर्ष में, एकता की शपथ ले हम”
8) “हो मुबारक ये त्यौहार आपको दीपावली का
ज़िन्दगी का हर पल मिले आपको खुशहाली का।”
9) “प्यार के जुगनू जले, प्यार की हो फुलझड़ियां
प्यार के फूल खिले, प्यार की हो पंखुड़िया।”
10) “प्यार की बंसी बजे, प्यार की हो शहनाईया…
खुशियो के दीप जले, दुःख कभी न ले अंगड़ाईयां ”
11) दीपावली में दीयों का दीदार,
बड़ों का दुलार और सबको प्यार।”
12) “आई आई दिवाली आई,
साथ मे कितनी खुशियाँ लायी,
धूम मचाओ मौज मनाओ,
आप सभी को दिवाली की बधाई।”
13) “हर घर में हो उजाला,
आए ना रात काली,
हर घर मे माने खुशिया,
हर घर मे हो दिवाली।”
14) “राष्ट्रहित का गला दबा कर,
छेद न करना थाली में।
मिट्टी वाले दिए जलाना,
अबकी बार मानना दीवाली।”
15) “दीप से दीप जले तो हो दीपावली,
उदास चेहरे खिलें तो हो दीपावली,
बाहर की सफाई तो हो चुकी बहुत,
दिल से दिल मिले तो हो दीपावली…”
16) “रौशनी से हो रौशन हर लम्हा आप का,
हर रौशनी सजे इस साल आपके आँगन में,
दुआ हम करते हैं आप सलामत रहे,
हर दुआ सजे इस साल आप के आँगन में,
Happy Diwali “
17) “खूब मीठे मीठे पकवान खाएं,
सेहत में चार चाँद लगायें,
लोग तो सिर्फ चाँद तक गए हैं,
आप उस से भी ऊपर जाएँ,
दीवाली की शुभकामनायें”
18) “दीयों की रोशनी से झिलमिलाता आँगन हो पटाखों की गूंजों से आसमान रोशन हो
ऐसी आये झूम के यह दिवाली आपकी
हर तरफ खुशियों का ही मौसम हो
दिवाली की शुभकामनाएं”
19) “मुस्कुराते हँसते दीप तुम जलाना
जीवन में नयी खुशियों को लाना
दुःख दर्द अपने भूल कर
सबको गले लगाना
शुभ दीपावली”
20) “दीपों का ये पावन त्यौहार
आपके लिए लाये खुशियाँ हज़ार
लक्ष्मी जी विराजें आपके द्वार
हमारी शुभकामनाएं करे स्वीकार
शुभ दीपावली”
21) शुभ करोति कल्याणमायेन्यं धनसंपदा।
शबुद्धिविनाशाय दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते॥
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
दिवाली के 20 कविताएं तथा उनके कवि
अब से दिवाली से पहले बच्चों को स्कूल से कुछ गतिविधियां करने को मिलती है जैसे नृत्य संगीत इत्यादि। इन्हीं में से एक है दिवाली पर कविता। बहुत सारे बच्चों को दिवाली पर कविता सुनाने को कहा जाता है या लिखने को कहा जाता है। आइए आज आपको ऐसी ही दिवाली पर कुछ कविता के बारे में बताते हैं तथा उनके लेखक से भी परिचय कराते हैं।
1) “आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ”- हरिवंश राय बच्चन
“आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
है कंहा वह आग जो मुझको जलाए,
है कंहा वह ज्वाल पास मेरे आए,
रागिनी, तुम आज दीपक राग गाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ
तुम नई आभा नहीं मुझमें भरोगी,
नव विभा में स्नान तुम भी तो करोगी,
आज तुम मुझको जगाकर जगमगाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
मैं तपोमय ज्योती की, पर, प्यास मुझको,
है प्रणय की शक्ति पर विश्वास मुझको,
स्नेह की दो बूंदे भी तो तुम गिराओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ ।
कल तिमिर को भेद मैं आगे बढूंगा,
कल प्रलय की आंधियों से मैं लडूंगा,
किन्तु आज मुझको आंचल से बचाओ;
आज फिर से तुम बुझा दीपक जलाओ”
2) “आओ फिर से दिया जलाएं” – अटल बिहारी बाजपेयी
“आओ फिर से दिया जलाएँ
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ”
“हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ।”
“आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियाँ गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ”
3) “दीप से दीप जले” – माखनलाल चतुर्वेदी
“सुलग-सुलग री जोत दीप से दीप मिलें
कर-कंकण बज उठे, भूमि पर प्राण फलें।
लक्ष्मी खेतों फली अटल वीराने में
लक्ष्मी बँट-बँट बढ़ती आने-जाने में
लक्ष्मी का आगमन अँधेरी रातों में
लक्ष्मी श्रम के साथ घात-प्रतिघातों में
लक्ष्मी सर्जन हुआ
कमल के फूलों में
लक्ष्मी-पूजन सजे नवीन दुकूलों में।।”
“गिरि, वन, नद-सागर, भू-नर्तन तेरा नित्य विहार
सतत मानवी की अँगुलियों तेरा हो शृंगार
मानव की गति, मानव की धृति, मानव की कृति ढाल
सदा स्वेद-कण के मोती से चमके मेरा भाल
शकट चले जलयान चले
गतिमान गगन के गान
तू मिहनत से झर-झर पड़ती, गढ़ती नित्य विहान।।”
“उषा महावर तुझे लगाती, संध्या शोभा वारे
रानी रजनी पल-पल दीपक से आरती उतारे,
सिर बोकर, सिर ऊँचा कर-कर, सिर हथेलियों लेकर
गान और बलिदान किए मानव-अर्चना सँजोकर
भवन-भवन तेरा मंदिर है
स्वर है श्रम की वाणी
राज रही है कालरात्रि को उज्ज्वल कर कल्याणी।।”
“वह नवांत आ गए खेत से सूख गया है पानी
खेतों की बरसन कि गगन की बरसन किए पुरानी
सजा रहे हैं फुलझड़ियों से जादू करके खेल
आज हुआ श्रम-सीकर के घर हमसे उनसे मेल।
तू ही जगत की जय है,
तू है बुद्धिमयी वरदात्री
तू धात्री, तू भू-नव गात्री, सूझ-बूझ निर्मात्री।।
युग के दीप नए मानव, मानवी ढलें
सुलग-सुलग री जोत! दीप से दीप जलें।”
4) “दीपदान” – केदारनाथ सिंह
“जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
उस उड़ते आँचल से गुड़हल की डाल
बार-बार उलझ जाती हैं,
एक दिया वहाँ भी जलाना;
जाना, फिर जाना,
एक दिया वहाँ जहाँ नई-नई दूबों ने कल्ले फोड़े हैं,
एक दिया वहाँ जहाँ उस नन्हें गेंदे ने
अभी-अभी पहली ही पंखड़ी बस खोली है,
एक दिया उस लौकी के नीचे
जिसकी हर लतर तुम्हें छूने को आकुल है
एक दिया वहाँ जहाँ गगरी रक्खी है,
एक दिया वहाँ जहाँ बर्तन मँजने से
गड्ढा-सा दिखता है,
एक दिया वहाँ जहाँ अभी-अभी धुले
नये चावल का गंधभरा पानी फैला है,
एक दिया उस घर में –
जहाँ नई फसलों की गंध छटपटाती हैं,
एक दिया उस जंगले पर जिससे
दूर नदी की नाव अक्सर दिख जाती हैं
एक दिया वहाँ जहाँ झबरा बँधता है,
एक दिया वहाँ जहाँ पियरी दुहती है,
एक दिया वहाँ जहाँ अपना प्यारा झबरा
दिन-दिन भर सोता है,
एक दिया उस पगडंडी पर
जो अनजाने कुहरों के पार डूब जाती है,
एक दिया उस चौराहे पर
जो मन की सारी राहें
विवश छीन लेता है,
एक दिया इस चौखट,
एक दिया उस ताखे,
एक दिया उस बरगद के तले जलाना,
जाना, फिर जाना,
उस तट पर भी जा कर दिया जला आना,
पर पहले अपना यह आँगन कुछ कहता है,
जाना, फिर जाना!”
5) “मुझे दीपक जला लू” – महादेवी वर्मा
“सब बुझे दीपक जला लूँ!
घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ!
क्षितिज-कारा तोड़ कर अब
गा उठी उन्मत आँधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास-तन्मय तड़ित् बाँधी,
धूलि की इस वीण पर मैं तार हर तृण का मिला लूँ!”
“भीत तारक मूँदते दृग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता
छोड़ उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता,
उँगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूँ!”
“लय बनी मृदु वर्त्तिका
हर स्वर जला बन लौ सजीली,
फैलती आलोक-सी
झंकार मेरी स्नेह गीली,
इस मरण के पर्व को मैं आज दीपावली बना लूँ!”
“देख कर कोमल व्यथा को
आँसुओं के सजल रथ में,
मोम-सी साधें बिछा दी
थीं इसी अंगार-पथ में
स्वर्ण हैं वे मत हो अब क्षार में उन को सुला लूँ!”
“अब तरी पतवार ला कर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना !
ज्वार को तरणी बना मैं; इस प्रलय का पार पा लूँ!
आज दीपक राग गा लूँ!”
6) “जगमग जगमग” – सोहनलाल द्विवेदी
“हर घर, हर दर, बाहर, भीतर,
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!”
“छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!”
“पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!”
“राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!”
7) “मत बुझना” – रामेश्वर शुक्ल अंचल
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
चाँद चाँदनी की मुरझाई
छिपा चाँद यौवन का तुममें
आयु रागिनी भी अकुलाती
रह रहकर बिछुड़न के भ्रम में
जलते रहे स्नेह के क्षण ये
जीवन सम्मुख है ध्रुवतारा
तुम बुझने का नाम लेना
जब तक जीवन में अँधियारा
अपने को पीकर जीना है
हो कितना भी सूनापन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
तुमने विरहाकुल संध्या की
भर दी माँग अरुणिमा देकर
तम के घिरे बादलों को भी
राह दिखाई तुमने जलकर
तुम जाग्रत सपनों के साथी
स्तब्ध निशा को सोने देना
धन्य हो रहा है मेरा विश्वास
तुम्ही से पूजित होकर
जलती बाती मुक्त कहाती
दाह बना कब किसको बंधन
रात अभी आधी बाकी है
मत बुझना मेरे दीपक मन
8) “मधुर मधुर मेरे दीपक जल” – महादेवी वर्मा
मधुर-मधुर मेरे दीपक जल!
युग-युग प्रतिदिन प्रतिक्षण प्रतिपल
प्रियतम का पथ आलोकित कर!
सौरभ फैला विपुल धूप बन
मृदुल मोम-सा घुल रे, मृदु-तन!
दे प्रकाश का सिन्धु अपरिमित,
तेरे जीवन का अणु गल-गल
पुलक-पुलक मेरे दीपक जल!
तारे शीतल कोमल नूतन
माँग रहे तुझसे ज्वाला कण;
विश्व-शलभ सिर धुन कहता मैं
हाय, न जल पाया तुझमें मिल!
सिहर-सिहर मेरे दीपक जल!
जलते नभ में देख असंख्यक
स्नेह-हीन नित कितने दीपक
जलमय सागर का उर जलता;
विद्युत ले घिरता है बादल!
विहँस-विहँस मेरे दीपक जल!
द्रुम के अंग हरित कोमलतम
ज्वाला को करते हृदयंगम
वसुधा के जड़ अन्तर में भी
बन्दी है तापों की हलचल;
बिखर-बिखर मेरे दीपक जल!
9) “मृतिका दीप” – शिवमंगल सिंह सुमन
मृत्तिका का दीप तब तक जलेगा अनिमेष
एक भी कण स्नेह का जब तक रहेगा शेष।
हाय जी भर देख लेने दो मुझे
मत आँख मीचो
और उकसाते रहो बाती
न अपने हाथ खींचो
प्रात जीवन का दिखा दो
फिर मुझे चाहे बुझा दो
यों अंधेरे में न छीनो-
हाय जीवन-ज्योति के कुछ क्षीण कण अवशेष।
तोड़ते हो क्यों भला
जर्जर रूई का जीर्ण धागा
भूल कर भी तो कभी
मैंने न कुछ वरदान माँगा
स्नेह की बूँदें चुवाओ
जी करे जितना जलाओ
हाथ उर पर धर बताओ
क्या मिलेगा देख मेरा धूम्र कालिख वेश।
शांति, शीतलता, अपरिचित
जलन में ही जन्म पाया
स्नेह आँचल के सहारे
ही तुम्हारे द्वार आया
और फिर भी मूक हो तुम
यदि यही तो फूँक दो तुम
फिर किसे निर्वाण का भय
जब अमर ही हो चुकेगा जलन का संदेश।
10) “मेरा दीपक” – रामेश्वर शुक्ल अंचल
मैं थकी जला कर बार-बार, मेरा दीपक बुझ जाता है
है नहीं स्नेह की कमी – लगी है यौवन की नूतन बाती
पर पवन झकोरे से कंपित वह लौ को नहीं पकड़ पाती
हो रहा कठिन इस ज्योति-स्पर्श का पल भर तो स्थिर रहना
यह घिरी तिमिर की भीड़ ज्वाल के सपने से भी कतराती
मैं जल-जल रचती गीत, न स्वर का दीप मगर जल पाती है
मेरे धूमावित सपनों को घेरे है घुटनभरी कारा
मैं पाकर भी खो-खो देती पीली सेंदुरी किरण-धारा
मैं दिया जलाती – बुझ-बुझ जाता जो झंझा झकझोरों से
यह युग-युग व्यापी दाह-न मिलता जिसे विभा का ध्रुव तारा
कितना भी आँचल ओट करूँ यह दीपक बढ़-बढ़ जाता है
कितनी उन्मत्त बयार न जो मेरा प्रदीप जलने देती।
वह कैसी मेरी परवशता जो मुझे पराजित कर देती
अक्षय मेरी आकांक्षा का वह जलने का बुझने का क्रम
मैं इसी सत्य की छाँह गहे जीती तृष्णा का कर देती
नृत्यातुर चपल उँगलियों का उल्लास पिघलता जाता है
11) “मैं दीपक हूं मेरा जलना ही तो काम है” – हरिवंश राय बच्चन
दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है|
आभारी हूँ तुमने आकर
मेरा ताप-भरा तन देखा,
आभारी हूँ तुमने आकर
मेरा आह-घिरा मन देखा,
करुणामय वह शब्द तुम्हारा–
’मुसकाओ’ था कितना प्यारा।
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है|
है मुझको मालूम पुतलियों
में दीपों की लौ लहराती,
है मुझको मालूम कि अधरों
के ऊपर जगती है बाती,
उजियाला कर देने वाली
मुसकानों से भी परिचित हूँ,
पर मैंने तम की बाहों में अपना साथी पहचाना है।
मैं दीपक हूँ, मेरा जलना ही तो मेरा मुस्काना है|
12) “दीपों का त्योहार” – दीनदयाल शर्मा
दीपों का त्यौहार दिवाली
आओ दीप जलाएँ,
भीतर के अंधियारे को हम
मिलकर दूर भगाएँ।
छत्त पर लटक रहे हों जाले
इनको दूर हटाएँ,
रंग-रोगन से सारे घर को
सुन्दर सा चमकाएँ।
अनार, पटाखे, बम-फुलझडी,
चकरी खूब चलाएँ,
हलवा-पूड़ी, भजिया-मठी
कूद-कूद कर खाएँ।
सुन्दर-सुन्दर पहन के कपड़े
घर-घर मिलने जाएँ,
इक दूजे में खुशियाँ बाँटे,
अपने सब बन जाएँ।
13) “दीपक” – महेंद्र भटनागर
मूक जीवन के अँधेरे में, प्रखर अपलक
जल रहा है यह तुम्हारी आश का दीपक !
ज्योति में जिसके नयी ही आज लाली है
स्नेह में डूबी हुई मानों दिवाली है!
दीखता कोमल सुगन्धित फूल-सा नव-तन,
चूम जाता है जिसे आ बार-बार पवन!
याद-सा जलता रहे नूतन सबेरे तक,
यह तुम्हारे प्यार के विश्वास का दीपक!
14) “दीपक जलता रहा रात भर” – गोपाल सिंह नेपाली
तन का दिया, प्राण की बाती,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दु:ख की घनी बनी अँधियारी,
सुख के टिमटिम दूर सितारे,
उठती रही पीर की बदली,
मन के पंछी उड़-उड़ हारे ।
बची रही प्रिय की आँखों से,
मेरी कुटिया एक किनारे,
मिलता रहा स्नेह रस थोडा,
दीपक जलता रहा रात-भर ।
दुनिया देखी भी अनदेखी,
नगर न जाना, डगर न जानी;
रंग देखा, रूप न देखा,
केवल बोली ही पहचानी,
कोई भी तो साथ नहीं था,
साथी था ऑंखों का पानी,
सूनी डगर सितारे टिमटिम,
पंथी चलता रहा रात-भर।
अगणित तारों के प्रकाश में,
मैं अपने पथ पर चलता था,
मैंने देखा, गगन-गली में,
चाँद-सितारों को छलता था ।
आँधी में, तूफ़ानों में भी,
प्राण-दीप मेरा जलता था,
कोई छली खेल में मेरी,
दिशा बदलता रहा रात-भर।
15) “कवि का दीपक” – हरिवंश राय बच्चन
आज देश के ऊपर कैसी
काली रातें आई हैं!
मातम की घनघोर घटाएँ
कैसी जमकर छाई हैं!
लेकिन दृढ़ विश्वास मुझे है
वह भी रातें आएँगी,
जब यह भारतभूमि हमारी
दीपावली मनाएगी!
शत-शत दीप इकट्ठे होंगे
अपनी-अपनी चमक लिए,
अपने-अपने त्याग, तपस्या,
श्रम, संयम की दमक लिए।
अपनी ज्वाला प्रभा परीक्षित
सब दीपक दिखलाएँगे,
सब अपनी प्रतिभा पर पुलकित
लौ को उच्च उठाएँगे।
तब, सब मेरे आस-पास की
दुनिया के सो जाने पर,
भय, आशा, अभिलाषा रंजित
स्वप्नों में खो जाने पर,
जो मेरे पढ़ने-लिखने के
कमरे में जलता दीपक,
उसको होना नहीं पड़ेगा
लज्जित, लांच्छित, नतमस्तक।
क्योंकि इसीके उजियाले में
बैठ लिखे हैं मैंने गान,
जिनको सुख-दुख में गाएगी
भारत की भावी संतान!
16) “गजब की दीवाली” – दीनदयाल शर्मा
धूम धड़ाका
बजे पटाखा
भड़ाम से बोला
बम फटा था।
सर्र-सर्र से
चक्करी चलती
फर्र-फर्र
फुलझड़ी फर्राटा।
सूँ-सूँ करके
साँप जो निकला
ऐसे लगा, मानो
जादू चला था।
फटाक-फटाक
चली जो गोली
ऐसा भी
पिस्तौल बना था।
ऐसी ग़ज़ब की
हुई दिवाली
किलकारी का
शोर मचा था।
हुर्रे-हुर्रे, का
शोर मचाकर
बच्चों का टोला
झूम रहा था।
17) “यह दीपक है यह परवाना” – हरिवंश राय बच्चन
ज्वाल जगी है, उसके आगे
जलनेवालों का जमघट है,
भूल करे मत कोई कहकर,
यह परवानों का मरघट है;
एक नहीं है दोनों मरकर जलना औ’ जलकर मर जाना।
यह दीपक है, यह परवाना।
इनकी तुलना करने को कुछ
देख न, हे मन, अपने अंदर,
वहाँ चिता चिंता की जलती,
जलता है तू शव-सा बनकर;
यहाँ प्रणय की होली में है खेल जलाना या जल जाना।
यह दीपक है, यह परवाना।
लेनी पड़े अगर ज्वाला ही
तुझको जीवन में, मेरे मन,
तो न मृतक ज्वाला में जल तू
कर सजीव में प्राण समर्पण;
चिता-दग्ध होने से बेहतर है होली में प्राण गँवाना।
यह दीपक है, यह परवाना।
18) “जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना” – गोपाल सिंह नेपाली
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
नई ज्योति के धर नए पंख झिलमिल,
उड़े मर्त्य मिट्टी गगन स्वर्ग छू ले,
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी,
निशा की गली में तिमिर राह भूले,
खुले मुक्ति का वह किरण द्वार जगमग,
ऊषा जा न पाए, निशा आ ना पाए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
सृजन है अधूरा अगर विश्व भर में,
कहीं भी किसी द्वार पर है उदासी,
मनुजता नहीं पूर्ण तब तक बनेगी,
कि जब तक लहू के लिए भूमि प्यासी,
चलेगा सदा नाश का खेल यूँ ही,
भले ही दिवाली यहाँ रोज आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
मगर दीप की दीप्ति से सिर्फ जग में,
नहीं मिट सका है धरा का अँधेरा,
उतर क्यों न आयें नखत सब नयन के,
नहीं कर सकेंगे ह्रदय में उजेरा,
कटेंगे तभी यह अँधरे घिरे अब,
स्वयं धर मनुज दीप का रूप आए
जलाओ दिए पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
19) “साथी घर-घर आज दिवाली” – हरिवंश राय बच्चन
फैल गयी दीपों की माला
मंदिर-मंदिर में उजियाला,
किंतु हमारे घर का, देखो, दर काला, दीवारें काली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
हास उमंग हृदय में भर-भर
घूम रहा गृह-गृह पथ-पथ पर,
किंतु हमारे घर के अंदर डरा हुआ सूनापन खाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
आँख हमारी नभ-मंडल पर,
वही हमारा नीलम का घर,
दीप मालिका मना रही है रात हमारी तारोंवाली!
साथी, घर-घर आज दिवाली!
20) “लो दिवाली की बधाई मित्रवर” – ऋषभदेव शर्मा
लो दिवाली की बधाई, मित्रवर!
लो दिवाली की मिठाई, मित्रवर!
एक दीपक के लिए मुहताज घर
आपने बस्ती जलाई, मित्रवर!
जल चुका रावण, न बुझती है चिता
आग यह कैसी लगाई, मित्रवर!
चौखटों की छाँह तक बीमार है
क्यों हवा ऐसी चलाई, मित्रवर!
अब रहो तैयार लुटने के लिए,
रोशनी तुमने चुराई, मित्रवर!
हर अँधेरी जेल तोडी जायगी,
यह कसम युग ने उठाई, मित्रवर!