700 शब्दों के भ्रष्टाचार पर हिंदी में लंबा निबंध
भ्रष्टाचार समाज में हो रही अन्याय, अनीति, अमानवीयता, कुशासन की जड़ जहां से पनपती है उसे भ्रष्टाचार कहा जाता है। यह एक प्रकार की बीमारी है जो संपूर्ण मानव समाज को खोखला करते जा रही है। समाज के विकास में बाधक, मानवजाति के हित का विरोधी, समाजिक पटल में उच्चासीन बैठे लोगों के गंदे दिमाग की उपज वास्तव में यहीं है भ्रष्टाचार।
समाज में पूंजीपतियों, राजनीतिक दलों तथा उच्चासीन लोगों की पहचान है भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार समाज में फैली हुई वह बीमारी है जो समाज के गरीब लोगों को यह अहसास दिलाती है कि पैसा ही सब कुछ है। पैसा है तो पावर है, न्याय है, इज्जत है, सब कुछ है। न्याय और नीति का मज़ाक उड़ाने वाली गंदी प्रथा है भ्रष्टाचार। समाज में अराजकता और डर फैलाने का कारण है भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार समाज में समाज के लिए उस काल की तरह है जो समाज को विकास के रास्ते से भटकाकर अंधेरे की ओर धकेलने का काम करता है। जो गुणवान लोगों को दबाती है, जो गरीबों को कुचलती है, जो मजदूरों को दबोचती है, जो न्याय को अपनी मुठ्ठी में तथा शासन को अपनी जेब में रखती है वास्तव में यहीं है भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार वह कुरीति है जिससे प्रभावित होकर नौजवान सही रास्ते से भटककर गलत रास्ते को अपनाते हैं। यह वह कुनीति है जो लोगों को यह सोचने को मजबूर कर देती है कि बाहुबल ही सब कुछ है। यह वह कुनीति है जो हमेशा सही को गलत तथा गलत को सही बतलाती हैं। यह समाज के लिए अभिशाप है। इसका कोई जात, मज़हब, रंग रूप नहीं होता। इसका कोई चेहरा नहीं होता। इसका धर्म भी पैसा है, मज़हब भी पैसा है और चेहरा भी पैसा है। असलियत में उच्च पदों से लेकर नीचे पदों पर आसीन पदाधिकारियों के खरीद बिक्री का व्यापार ही हैं भ्रष्टाचार।
भ्रष्टाचार का इतिहास
भ्रष्टाचार का इतिहास काफी पुराना है जो कि युगों युगांतर से चलता आ रहा है। इसका वर्णन भिन्न भिन्न प्रकार के इतिहास में मिलता है। समय समय में भ्रष्टाचार में भ्रष्टाचारियों के खरीद बिक्री की प्रणाली में अंतर देखने को मिल सकता है। भ्रष्टाचार का वर्णन कई रूपों में मिलता है कभी इसे उपहार का नाम दिया जाता है तो कभी रिश्वत तो कभी दान का नाम दिया जाता है। परंतु असल में सब भ्रष्टाचार की श्रेणी में ही आता है।
अपने किसी कार्य को करवाने हेतु किसी सरकारी तथा नीजि पदाधिकारी को दिया जानेवाला तोहफा, रिश्वत और दान ही भ्रष्टाचार है और यह प्रचलन काफी पुराना है। समय के साथ साथ इसके प्रणाली में बदलाव होता रहता है और इसका नाम बदल दिए जाते हैं। भ्रष्टाचार का भयानक रूप हमारे सामने संपूर्ण सृष्टि में १९वीं सदी के बाद सामने आया। वैसे तो इसका चलन इतना पुराना है कि वास्तविक प्रमाण दे पाना मुश्किल है।
भ्रष्टाचार का विस्तार
भ्रष्टाचार का फैलाव इतना ज्यादा हो गया है कि संपूर्ण विश्व में सरकारी दफ्तर हो या निजी दफ्तर, चपरासी हो या अधिकारी, विपक्षी दल हो या सत्ताधारी दल, राजनेता हो या आम कर्मचारी सभी भ्रष्टाचार को प्रसाद समझ कर ग्रहण करते हैं। आज लोग अपने नौकरी में मिलने वाले वेतन से ज्यादा ऊपर की आमदनी ढूंढते हैं।
आज भ्रष्टाचार संपूर्ण विश्व में अपने चरम सीमा को स्पर्श कर रही है। पठन-पाठन का केंद्र, अस्पताल, न्यायालय, हर जगह भ्रष्टाचार अपना पैर पसार चुकी है। भ्रष्टाचार और समाज के दैनिक दिनचर्या में शामिल हो गया है। कोई भी कार्य करवाने से पहले आपको यह पता करना पड़ता है कि इस कार्य को करवाने हेतु कितना रिश्वत देना पड़ेगा। रिश्वत देने से आजकल कोई भी कार्ड आसानी से हो जाता है। फिर क्यों ना इसके लिए किसी की जिंदगी बर्बाद हो जाए। उच्च पदों के लिए जहां जाकर आप देश का भविष्य बदल सकते हो आपको रिश्वत देनी पड़ती है जिसके कारण वहां ऐसे लोगों की बहाली होती है जो रिश्वत दे पाए और फिर यही लोग वहां बैठकर रिश्वत की मांग करते हैं। रिश्वत पूरे विश्व में इस तरह फैल चुका है कि इसकी दलदल में पूरा सभ्य समाज खामोश पड़ा है।
विश्व का कोई भी भूभाग इससे अछूता नहीं रहा। तमाम प्रयासों के बावजूद भी इसे रोक पाना संभव नहीं हो पा रहा। क्योंकि जो भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने नियुक्त किया जाता है वही भ्रष्टाचारी बन जाता है। भ्रष्टाचार अपने आप में वह मोहिनी मंत्र है जो किसी भी प्रकार के अच्छे से अच्छे चरित्र वाले इंसान को अपने जाल में फंसा लेता है।
भ्रष्टाचार पर निबंध हिंदी में 300 शब्दों की
भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव
भ्रष्टाचार वह बुराई है समाज के विकास में जो समाज को सदा अंधकार की ओर ले जाने का कार्य करती है। भ्रष्टाचार के कारण लोगों का मनोबल टूट जाता है लोग हार मानने लगते हैं जिससे समाज का विकास नहीं हो पाता।। अमीर और अमीर होते जाते हैं और गरीब और अधिक गरीब हो जाते हैं। भ्रष्टाचार के कारण लोगों का भरोसा न्याय तंत्र तथा शासन तंत्र से उठ जाता है। लोग सरकार पर भरोसा नहीं कर पाते। समाज के विकास की पटरी पर सबसे बड़ा बाधक है भ्रष्टाचार। भ्रष्टाचार के कारण मारकाट, लूट, हिंसा जैसी घटनाएं बढ़ती है। सरकार के खिलाफ अविश्वास की भावनाएं बढ़ती है और नवयुवक राह से भटक कर गलत राह चुनने को मजबूर हो जाते हैं। नक्सलवाद और आतंकी गतिविधियां भी कहीं ना कहीं भ्रष्टाचार से फलती फूलती है। भ्रष्टाचार हमेशा समाज में उठ रहे अच्छाइयों को दबाने का कार्य करती है।
निष्कर्ष
भ्रष्टाचार को खत्म करने का प्रयास भी तब से किया जा रहा है जब से भ्रष्टाचार अपना पैर पसार रही है परंतु भ्रष्टाचार को रोकने में हमेशा नाकामी ही हाथ लगी है। भ्रष्टाचार आज इतनी फैल चुकी है कि कोई अकेला मुल्क या इंसान इसे नहीं रोक सकता। भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए समाज को एकजुट होना पड़ेगा। पूरे विश्व की नीति में बदलाव करनी पड़ेगी। इसके लिए नए सिरे से कमेटी गठित करनी पड़ेगी इस कमेटी के लिए ही अलग से निगरानी कमेटी गठित करनी पड़ेगी। सभी अधिकारियों पर सरकारी नीति का प्रभाव पड़े ऐसी नीति लानी पड़ेगी। एक ऐसी नीति की जरूरत पड़ेगी जो संपूर्ण समाज के प्रत्येक व्यक्ति पर लागू हो और उसका प्रभाव स्पष्ट देखें। सामाजिक पटल पर इसका विरोध स्पष्ट रूप से दिखना अति आवश्यक है बिना समाज के यह संभव नहीं है। कईसे करी नियम बनाया जाए तथा कार्रवाई हो जिसे देखकर किसी को भी रिश्वत लेने से डर हो तभी भ्रष्टाचार पर हम काबू कर सकते हैं।