जाने किस पहर कोरोना आया
कहते हैं वुहान से शुरु हुआ
अब पूरी दुनिया मे जाता है पाया
बाहर अब सब बंद हुआ है
जिसको लाॅकडाउन का नाम दिया है
पढ़ना लिखना आॅनलाइन किया है
‘वर्क फरॉम होम’ से काम चला है
बाहर सब बंद है मगर
काम सब चल रहा है
फिर इससे नुक्सान क्या हुआ है?
फसा वही है जो हमेशा फसता रहा है
झूठे वादों के ढकोसलों से लड़ता रहा है
शोर ये है कि महामारी आई है
ग़रीबों की भूख ने जान खाई है
महामारी भी सियासी मुद्दा हो गया
असल बात न कोई जानता न पूछता
तस्वीर है जो सामने
आधी है या तसवीर है भी नही
पड़ोसी देश से चल रही बराबरी
आधे मान बैठे कि सब ठीक है चल रहा
मगर किसी को क्या पता
असल तस्वीर है लापता।
— शीतल महाजन।