साउथ की सबसे बड़ी फिल्म केजीएफ 2 भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड पर आधारित है। इस सोने की खदान का इतिहास 121 साल पुराना है।
केजीएफ यानी कोलार गोल्ड फील्ड्स कर्नाटक के दक्षिण पूर्व इलाके में स्थित है। रिपोर्ट्स के मुताबिक केजीएफ से अभी तक 900 टन सोना निकाला जा चुका है. साल 2019 में श्रीरंगपट्टनम की लड़ाई में अंग्रेजों ने टीपू सुल्तान को मार दिया था। इसके बाद उन्होंने कोलार और आसपास के राज्यों को घेर लिया लेकिन बाद में यह जमीन मैसूर राज्य को वापस सौंप दी गई और सर्वे का अधिकार अंग्रेजों के पास ही रहा। पुराने सूत्रों के अनुसार यह पता चला है कि कोलार में हाथों से सोना खोदकर निकाला जाता था। यह घोषणा की गई थी कि सोना निकालने वालों को इनाम दिया जाएगा। इसके बाद लोगों ने 56 किलो मिट्टी हाथों से खोद दी परंतु उससे बहुत थोड़ा सा सोना निकला। यह देखने के बाद तकनीक का इस्तेमाल किया गया। अंग्रेजों ने 1804 से लेकर 1807 तक सोना निकालने के लिए खतरनाक एक्सपेरिमेंट किए। इन सब के बावजूद उनके हाथ कोई कामयाबी नहीं लगी और कई मजदूरों की मौत भी हो गई। यह देखकर अंग्रेजों ने खुदाई पर रोक लगा दी।
इसके बाद लेवली, एक ब्रिटिश सैनिक को रिसर्च करने का ख्याल आया और वह कोलार पहुंच गए। उन्होंने मैसूर के महाराज से कोलार में खुदाई की इजाजत मांगी और 1875 में फिर से खुदाई शुरू की गई। रोशनी के लिए यहां पर बिजली का इंतजाम किया गया और कोलार भारत का वह पहला शहर था जहां बिजली पहुंची। लवली की कोशिशों के बाद 1902 में केजीएफ से 95% सोना निकाला जाने लगा।
आजादी के बाद केजीएफ की खदानों पर भारत सरकार का कब्जा हो गया और 1956 में सोने की खान का राष्ट्रीयकरण हो गया। भारत गोल्ड माइन्स लिमिटेड ने साल 1970 में यहां पर फिर से सोना निकालना शुरू किया। इन खदानों से सरकार को शुरुआत में तो फायदा हुआ लेकिन बाद में कंपनी घाटे में पहुंच गई। कंपनी के पास मजदूरों को देने के लिए आमदनी नहीं बची। इसके बाद से कोलार गोल्ड फील्ड्स खंडहर में तब्दील हो गए। अब सरकारी रूप से इसे बंद करने का निर्देश दिया गया है।