गुरु शब्द दो शब्दों के जोड़े से बना है। गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ रौशनी गुरु अंधकार से रौशनी की ओर ले जाने वाले व्यक्ति हैं।हमारे पहले गुरु हमारे माता पिता है।परंतु गुरु को माता-पिता से भी बड़ा स्थान प्राप्त है। यह हमारे अंधकार से भरे जीवन को प्रकाश से भर उसे उजागर करते हैं।गुरु के बिना किसी भी व्यक्ति के जीवन का कोई मोल नहीं होता। प्रतेक व्यक्ति को अपने जीवन की शुरुआत करनी के लिए माता पिता की जरुरत पड़ती है।ठीक उसी तरह उस जीवन में शिक्षा को प्राप्त करने के लिए उसका ज्ञान अर्चन कर ने के लिए गुरु की जरूरत पड़ती है। जीवन को विकसित करने तथा किसी मुकाम को हासिल करने के लिए निश्चय ही एक व्यक्ति को गुरु की जरुरत है। भारतीय संस्कृति में ऐसा माना गया है कि गुरु के बिना ना तो आत्म दर्शन होता है और ना ही परमात्मा दर्शन अर्थात यदि जीवन में गुरु का आशीर्वाद ना हो या गुरु ना हो तो व्यक्ति का मिलना न तो खुद से होता है और ना ही ईश्वर से होता है।
गुरु का एक खास महत्व विद्यार्थी जीवन में है।विद्यार्थी के जीवन में गुरु की भूमिका अहम होती है।जिस प्रकार घर में माता-पिता हमें संस्कार दे कर हमें सही रास्ते पर चलने की सलाह देते हैं। ठीक उसी प्रकार गुरु विद्यालय में हमारे पथ प्रदर्शक बन हमें सही राह की ओर ले जाकर हमारा जीवन विकसित करते हैं। विद्यालय में गुरु हमें हर प्रकार के विषयों की जानकारी देते हैं।तथा जीवन के अलग-अलग मुश्किलों का सामना कर हमें आगे बढ़ना सिखाते हैं। गुरु अपने विद्यार्थियों को अनुशासन सिखाते हैं,विनम्रता,बङो का सम्मान करना सिखा कर एक सामान्य प्राणी को मनुष्य बनाते हैं। कभी लोहे की तरह कठोर तो कभी फूल जैसे कोमल बनकर गुरू अपने शिष्यों को सही रास्ते पर लाते हैं।
भारत में प्राचीन काल से ही गुरु का एक विशेष दर्जा एक विशेष महत्व है। जिस तरह एकलव्य ने तीर अदाजी सीखने के बाद बिना सोचे समझे गुरु द्रोणाचार्य को अपना अंगूठा काट कर गुरु दक्षिणा के स्वरुप दे दिया था। अपने जीवन से भी ज्यादा महत्व गुरु का है।
गुरु की भूमिका सबके जीवन में अहम होती है। गुरु के प्रति हर मनुष्य श्रद्धा विश्वास आस्था वह सम्मान का भाव रखता है। हर मनुष्य अपने जीवन में लिए जाने वाले छोटे से बड़े फैसलों के लिए गुरु की इच्छा जानना चाहता है। जिंदगी के हर छोर में गुरु की आवश्यकता है। यदि आप काल, संगीत, नृत्य जैसी किसी जैसे किसी भी कार्य को सीखना चाहते हैं। तो उसके लिए आपको उस गुरु के पास जाकर उस चीज का ज्ञान प्राप्त करना होगा।संगीत के गुरु संगीत का बोध करवाते हैं, कला के गुरु कला का बोध करवाते हैं, और नृत्य के गुरु नृत्य का बोध कराते हैं। इसी तरह हर कार्य हर क्षेत्र में गुरु की भूमिका अहम है।
गुरु को सम्मान देने के लिए गुरु पूर्णिमा भी बनाया जाता है।गुरु पूर्णिमा का यह पर्व गुरु की महानता को एहसास करने के लिए बनाया जाता है।इस दिन घर वह मंदिरों में विशेष पूजा पाठ भी की जाती है। तथा विद्यार्थी अपने गुरु को सम्मान देने के लिए दान करते हैं। इस से विद्यार्थीयो को पुण्य की प्राप्ति होती है।