इंसुलिन किसे कहते हैं?, इंसुलिन की खोज कब और किसने की?

हमारे शरीर में कई प्रकार का हार्मोन उत्सर्जित होता है। इंसुलिन भी उनमें से एक महत्वपूर्ण हारमोंस है जिसका निर्माण शरीर के अंदर अग्नाशय में होता है। रासायनिक संरचना की दृष्टि से यह एक पेप्टाइड हार्मोन है। जिसकी रचना 51 अमीनो अम्ल से होती है। यह शरीर में गुलकोज के उपापचय को नियंत्रित करता है और गुलकोज के विघटन से उर्जा उत्पन्न होती है।

इंसुलिन का कार्य

शरीर के अंदर आमाशय भोजन से प्राप्त कार्बोहाइड्रेट्स को रक्त शर्करा में  परिवर्तित करता है। इंसुलिन हार्मोन के कारण ही रक्त शर्करा ऊर्जा में परिवर्तित हो जाता है। यदि अग्नाशय इंसुलिन बनाना बंद कर दे तो खून में शर्करा ऊर्जा में  परिवर्तित नहीं होता है तथा मधुमेह जैसी बीमारी होने की समस्या बढ़ जाती है। तथा इसकी कमी होने से हाइपोग्लाइसीमिया नामक बीमारी होता है।

प्रयोगशाला में इंसुलिन का निर्माण।

मधुमेह की बीमारी के उपचार के लिए वैज्ञानिकों ने रसायनिक रूप से इंसुलिन तैयार किया। जिसका हिंदी नाम मधुसुदिनी रखा गया। प्रयोगशाला में मानव इंसुलिन का संप्रेषण से सामान्य बैक्टीरिया की उपस्थिति में बनाया गया था। वर्तमान स्थिति में येशेरिकिया कोलाई नामक बैक्टीरिया  का इस्तेमाल सबसे ज्यादा इंसुलिन बनाने में किया जा रहा है। अब तो ईस्ट से भी इंसुलिन का निर्माण किया जाता है।

इंसुलिन का खोज कब और किसने किया?

इसका खोज कनाडा के चिकित्सक वैज्ञानिक सर फ्रेडरिक ग्रांट बैटिंग ने सन् 1921 में  किया था।

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वैज्ञानिकों ने इंसुलिन को चार भागों में बांट है।

  1. शॉर्ट एक्टिंग इंसुलिन -इसका असर बहुत तेजी से मात्र 30 से 36 मिनट में होता है और इसका प्रभाव 6 से 8 घंटे तक रहता है।
  2. इंटरमीडिएट एक्टिंग इन्सुलिन-यह बहुत धीरे-धीरे एक-दो घंटे में असर करता है और इसका प्रभाव 10से 14 घंटे तक रहता है।
  3. लॉन्ग एक्टिंग इंसुलिन- इसका असर समान्य तरीके से होता है तथा 24 घंटे तक इसका प्रभाव रहता है।
  4. इंसुलिन मिश्रण -इसमें सभी प्रकार के मिश्रण के प्रयोग कर बनाया जाता है।

मधुमेह रोगियों के लिए रामबाण है इंसुलिन का खोज।

मधुमेह बीमारी से ग्रसित रोगियों के लिए कृत्रिम इंसुलिन बहुत ही महत्वपूर्ण है। इंसुलिन से रक्त शर्करा का स्तर नियंत्रित होता है और इसकी मदद से मधुमेय रोगी को उपचार किया जाता है।

मधुमेह रोगी दो प्रकार के होते हैं ।

  1. पहला प्रकार के मरीज में अग्नाशय की बीटा कोशिकाएं क्षतिग्रस्त या नष्ट होने के कारण इंसुलिन नहीं बन पाता है। जिसके कारण खून में शर्करा का लेवल बढ़ता जाता है ।ऐसे लोगों को इंसुलिन इंजेक्शन की और आवश्यकता होती है।
  2. परंतु दूसरे प्रकार के मरीज मैं तो इंसुलिन बनता है। लेकिन उसका असर शरीर पर नहीं होता है।ऐसे रोगियों को संतुलित आहार एवं योगा तथा व्यायाम से इलाज किया जाता है।

अत,: इन दोनों प्रकार में पहले प्रकार के जो रोगी होते हैं उन्हें इंसुलिन देखकर उपचार किया जाता है।

शरीर में शर्करा की मात्रा यानी शुगर लेवल कितनी होनी चाहिए।

सामान्य व्यक्ति के लिए रक्त में शर्करा की मात्रा100mg/dl होनी चाहिए। परंतु मधुमेह रोगियों के लिए यदि व्यस्क  हो तो 200 से 300mg/dl तथा बच्चों को 200से240mg/dl तक हो तो घबराना नहीं चाहिए लेकिन इससे अधिक होने पर तत्काल चिकित्सक का परामर्श लेना चाहिए।

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शरीर में सही मात्रा में इंसुलिन का स्त्राव होते रहने के लिए नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम एवं संतुलित भोजन करना चाहिए।