प्राचीन भारत में ग्रह और नक्षत्रों की जानकारी प्राप्त करने के लिए जिस विद्या का उपयोग करते थे उसी को ज्योतिषी विद्या कहा जाता था। मतलब साफ है कि पृथ्वी में रहकर हमारे पूर्वज आचार्यों, ऋषि एवं मुनियों द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड के बारे में अध्ययन की विद्या को ज्योतिषी विद्या कहा जाता था। ज्योतिषी विद्या मुख्य रूप से गणित के गणना पर आधारित था। बाद में फलित ज्योतिष के समावेश होने के बाद इसको मानव अपने भाग्य गणना के रूप में देखने लगा। हमारे ज्योतिष वेदों के जितना प्राचीन है तथा भारत में एक लाख से ज्यादा ज्योतिष की पांडुलिपिया हैं।
ज्योतिष शास्त्र का इतिहास:
प्राचीन काल में गणित को ही ज्योतिष माना जाता था परंतु आगे चलकर इसको तीन अलग-अलग भागों में बांटा गया।
- तंत्र या सिद्धांत –
इसमें प्राचीनकाल में गणितीय गणना से ग्रहों की गतियां और नक्षत्रों की जानकारियां प्राप्त किया जाता था।
- होरा –
इसका संबंध मनुष्य अपने भविष्य के बारे में जानने के लिए उपयोग करता था। इसमें कुंडली बनाने का ज्ञान प्राप्त किया जाता था । इसके तीन उपविभाग थे जातक ,यात्रा और विवाह जो आज भी प्रचलित है।
- शाखा –
यह विस्तृत भाग था। जिस पर शकुन परीक्षण, लक्षण परीक्षण एवं भविष्य सूचना का विवरण प्राप्त होता था।
वर्तमान समय में भारतीय ज्योतिष शास्त्र का मनुष्य के जीवन में बड़ा ही महत्व है। ऐसा माना जाता है कि आज जो भी शुभ काम हम करते हैं या अपने भविष्य के बारे में जानना जानना चाहते हैं। तो हम मुख्य रूप से ज्योतिष शास्त्र पर ही निर्भर रहते हैं। भारत में सैकड़ों ज्योतिष विद्या का प्रमाण मिलता है। परंतु उनमें से कुछ ही विद्या देश के संपूर्ण भागों में प्रचलित है।
आज हम कुछ ज्योतिष विधाओं के बारे में सही जानकारी प्राप्त करेंगे।
- कुंडली ज्योतिषी-
इस विद्या के अनुसार किसी व्यक्ति के जन्म के समय आकाश में उपस्थित ग्रह तारा या नक्षत्र की जो स्थिति होती है। उसी के आधार पर कुंडली बनाई जाती है तथा 12 राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों के अध्ययन कर जातक के भविष्य बताया जाता है। यह भारत में प्रचलित सबसे सामान्य ज्योतिष विद्या है।
- गणित ज्योतिष-
इसको भारतीय अंक विद्या के नाम से भी जाना जाता है। इसके द्वारा प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के अंक निर्धारित हैं। फिर जन्म तारीख वर्ष आदि के गणना के द्वारा भाग्यशाली अंक और भाग्य बताया जाता है।
- नंदी नाड़ी ज्योतिष –
इस ज्योतिष का जन्मदाता भगवान शंकर के वाहक नंदी को माना जाता है। इसमें ताड़ पत्र के द्वारा भविष्य की गणना की जाती है। यह मुख्यता दक्षिण भारत में प्रचलित है।
- पंच पंछी सिद्धांत –
इस सिद्धांत के द्वारा पांच पंछियों की गुण के आधार पर किसी जातक के लग्न नक्षत्र जन्म के आधार पर आपका पक्षी ज्ञात किया जाता है । पंछी के गुण के आधार पर उसका भविष्य बताया जाता है। यह 5 पक्षी के नाम हैं गिद्ध, उल्लू कोवा, मुर्गी, और मोर।
- हस्त रेखा ज्योतिष –
हमारे हाथों में उपस्थित आड़ी, तिरछी रेखाएं सीधी रेखाओं के अलावा हाथों के चक्र, क्रॉस आदि का अध्ययन करके किसी व्यक्ति का भविष्य बताने का यह एक प्राचीन विद्या है। जो आज भी सबसे ज्यादा प्रचलित है।
- नक्षत्र ज्योतिष-
इस विद्या द्वारा जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता है। उसका उस नक्षत्र के अनुसार भविष्य बताया जाता है। नक्षत्रों की संख्या 27 है ।और यह वैदिक काल से चलता आ रहा है।
- वैदिक ज्योतिष-
इसके अनुसार राशि चक्र, नवग्रह, जन्म राशि के आधार पर गणना की जाती है। इसमें भी नक्षत्रों की गति के आधार पर ही किसी जातक के भविष्य की गणना की जाती है।
- अंगूठा शास्त्र-
इस विद्या के अनुसार किसी मनुष्य के अंगूठे की छाप लेकर उस पर उभरी रेखाओं के आधार पर उसका भविष्य बताया जाता है।
- समुदिक विद्या –
इस विद्या के अनुसार किसी व्यक्ति के संपूर्ण शरीर की बनावट एवं संरचना जैसे मस्तिष्क, चेहरा, ललाट, आंख नाक, मुंह, गाल, हाथ, पैर, अंगुलियां को देखकर उसकी भविष्य बता देने वाली एक प्राचीन विद्या भारत में प्रचलित है।
इसके अलावा चीनी ज्योतिष टैरो कार्ड जैसे विदेशी ज्योतिष भी भारत में कहीं ना कहीं प्रचलित है।