कन्या भ्रूण हत्या महिलाओं के प्रति सामाजिक असहजता के कारण महिलाओं को समाज में तुच्छ दृष्टि से देखा जाता है। जिस तुच्छ दृष्टि की मूल भावना ही यह होती है कि सामाजिक उत्थान में महिलाओं का कोई योगदान नहीं होता है। महिलाएं सिर्फ समाज में घरेलू कामकाज देख सकती है। महिलाएं सृष्टि के संचालन में पुरुष का सिर्फ ध्येय मात्र है। स्त्री को समाज में बोझ माना जाता है। यह गलत अवधारणा मानव समाज में स्त्री के महत्वता को कम करती है।
कन्या को परिवार का अतिरिक्त भार माना जाता है। कन्या भ्रूण हत्या इन्ही गलत अवधारणाओं का परिणाम है। गरीब माता-पिता यहां तक कि कई अमीर परिवार में भी पैसों तथा बोझ के कारण बच्चा पैदा होने से पहले ही गर्भ की जांच कराई जाती है अगर जांच में कन्या निकलती है तो उसका गर्भपात करा दिया जाता है। गर्भ में ही कन्या को मारना कन्या भ्रूण हत्या कहलाती है। कन्या भ्रूण हत्या को किसी पाप से कम नहीं माना जाता है। यह एक अपराध है और यह अत्याचार की श्रेणी में आती है।
सामाजिक असहजता, सामाजिक उत्पीड़न, सामाजिक व्यवस्था, सामाजिक असमानता, सामाजिक वर्ग प्रधानता इसका मूल कारण है। समाज में स्त्रियों के प्रति घृणा, स्त्रियों के प्रति गंदी मानसिकता का प्रर्दशन करती है कन्या भ्रूण हत्या। स्त्री पुरुषों के जनसंख्या में अंतर का कारण है भ्रूण हत्या। समाज में महिलाओं के प्रति दुष्प्रचार, महिलाओं के प्रति अमानवीयता, महिलाओं के प्रति दुराचार, महिलाओं के प्रति गंदी सोच, पुरुष प्रधानता वाली मानसिकता का नतीजा है भ्रूण हत्या।
भ्रूण हत्या का कारण
समाज में लड़के तथा लड़कियों में एक विचारात्मक तुलना इसका मुख्य कारण है। लड़कियों को हमेशा लड़कों से कम करके आंका जाता है। ऐसी अवधारणा बना ली जाती है कि यह कुछ कर ही नहीं सकती है। लड़कियों को सिर्फ घर का काम करना है बच्चे संभालने हैं अपने पति तथा सास ससुर का ख्याल रखना है तथा घरेलू रस्मों रिवाजों को निष्ठा पूर्वक अदा करना है इस तरह की अवधारणाएं स्त्री महत्वता को कम करती है। जिसके कारण लड़कियां हमेशा अपमानित होती है। समाज की बहुत सारी ऐसी बुराइयां हैं जो समाज में लड़कियों के जन्म को बोझ का नाम देती है।
दहेज प्रथा, स्त्री लज्जा, पारिवारिक मर्यादा आदि ऐसी पहलू हैं जो समाज में स्त्री के प्रति गलत विचारधाराएं फैलाती है। दहेज प्रथा एक ऐसी बीमारी है जो लड़की के मां-बाप को एहसास दिलाती है कि लड़की पैदा करना बोझ है। दहेज के नाम पर लड़के वाले मोटी मोटी रकम लड़की वालों से लेते हैं जो गरीब माता-पिता कर्ज लेकर अपनी खेत बेचकर पूरा करते हैं। दहेज प्रथा ऐसी प्रथा है जिसमें पैसा देकर अपने लड़की को उसे सौंपना पड़ता है। इस तरह से लड़की की शादी किसी रिश्ते से ज्यादा अपनी संपत्ति अपनी ही पैसे देकर दूसरों को सौंपना प्रतीत होता है। यह एक दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना है।
दहेज प्रथा पाप है यह एक सामाजिक कलंक है तथा अपराध भी। दहेज के अलावा स्त्री लज्जा एक ऐसी गंदी सोच है समाज के अंदर जो यह दर्शाती है कि स्त्री कोई वस्तु है। स्त्री को लज्जा का रूप दिया जाता है उसके भोजन, वस्त्र, रहन-सहन आदि पर इस तरह की निगाहें रहती है मानों जैसे आप अपने किसी वस्तु को सजाकर रखते हैं। स्त्री समाज के चरित्र की तुलना हमेशा पुरुष समाज उसके इन्हीं चीजों पर तय करता है। स्त्री के व्यक्तिगत जीवन पर पुरुष समाज इस तरह अपनी निगाहें जमाए बैठा होता है जैसे उसे अपनी इच्छा से जीने का कोई अधिकार नहीं है।
समय-समय पर तो कई बार पुरुषों की बुजदिली उसकी नाकामी और अमर्यादित कार्यों को छुपाने के लिए स्त्री समाज को अपमानित किया जाता है जैसे कि इसकी जिम्मेदार स्त्री समाज ही हो। स्त्री को हमेशा घर के अंदर रहने की सलाह दी जाती है। स्त्री को पर्दा में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। स्त्री को परिवार और समाज की मर्यादा के जंजीर में इस तरह जकड़ा जाता है कि स्त्री के कारण उस परिवार की इज्जत दांव पर लगी हो।
इन्हीं सब बेबुनियाद तथा शर्मनाक तत्वों के कारण लोग पुरुष को समाज में अधिक महत्व देते हैं तथा स्त्री को कम। इन्हीं कारणों से लोग सिर्फ बेटा पैदा करना चाहते हैं बेटी नहीं। इन्हीं सब कारणों से लोग गर्भ में ही कन्या की हत्या या गर्भपात करवा देते हैं। कन्या भ्रूण हत्या करना एक अपराधिक घटना है यह पाप है और यह हत्या के ही समान है।
कन्या भ्रूण हत्या का दुष्प्रभाव
मोहन हत्या के कारण स्त्री और पुरुष की संख्या में भारी अंतर देखने को मिलता है। लड़कों की अनुपात में लड़कियों की संख्या कम है। विश्व तथा वैश्विक समाज में कई ऐसे उदाहरण है जो लड़कियों की काबिलियत तथा उसकी बहादुरी का परिचय देती है। हत्या और गलत मानसिकता की वजह से कहीं ना कहीं एक अच्छा कला तथा कलाकार की हत्या भ्रूण हत्या के माध्यम से हो रही है। हत्या के द्वारा स्त्री काबिलियत तथा उसकी बहादुरी को कुचलने का प्रयास होता है। गुणी महिलाएं अपना गुण समाज में बिखेरने से वंचित रह जाती है।
निष्कर्ष
भ्रूण हत्या पाप तथा अपराध है। यह समाज के विकास तथा स्त्री शक्ति के प्रदर्शन में सबसे बड़ा बाधक है। शासन तथा प्रशासन द्वारा इसे रोकने हेतु विभिन्न प्रकार की योजनाएं तथा कार्यक्रम चलाई जा रही है। समाज को जागरूक करने के लिए गांव-गांव नुक्कड़ नाटकों के द्वारा जागरूकता फैलाई जा रही है। स्त्री को आरक्षण जैसी सुविधाएं दी जा रही है। उनके पढ़ाई तथा पोषण के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है। हत्या को रोकने के लिए कठोर से कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। दहेज प्रथा पर पाबंदी लगाई गई है।
महिला सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया है। महिलाओं को समाज में उचित स्थान दिलाने हेतु विभिन्न प्रकार की नौकरियों में उन्हें प्रथम स्थान दिया गया है। सरकार द्वारा महत्वपूर्ण और ठोस कदम उठाए जा रहे हैं परंतु बिना सामाजिक पहल और जागरूकता के इस पर नियंत्रण पाना मुश्किल है। हालांकि नियमों और सुविधाओं के मिलने से समाज में इसका असर देखने को मिला है। आज स्त्रियों को शैक्षणिक से लेकर राजनीतिक पटल पर महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। समाज में सामाजिक सोच कि बदलाव की जरूरी है। स्त्री की मां होती है बहन होती है और पत्नी होती है। स्त्री के बिना सृष्टि का सृजन संभव ही नहीं है। स्त्री समाज की रचयिता है यह सृष्टि का संचालिका है बिना स्त्री समाज का विकास संभव नहीं है। इसीलिए स्त्री बचाइए जीवन बचाइए।