शिक्षक दिवस 5 सितंबर को क्यों मनाया जाता है?

जानिए कि क्यों 5 सितंबर को मनाया जाता है शिक्षक दिवस ?

शिक्षा का अर्थ है: सीखने-सिखाने की क्रिया और यह क्रिया हमारे शिक्षक पूरी करते हैं।

जिस प्रकार दिमागी इंसान के जीवन में शिक्षा की जरूरत होती है, उसी प्रकार उस दिमागी इंसान को सही शिक्षा देने वाले शिक्षक की जरूरत होती है।

सिर्फ किताबी ज्ञान देने वाले ही शिक्षक नहीं है, हमारे जीवन में हर प्रकार के शिक्षक आते हैं। शिक्षक एक ऐसे व्यक्ति हैं, जो स्वयं जलते हैं और हमे रोशनी प्रदान करते हैं। शिक्षक अपने छात्रों को एक अच्छा इंसान बनाने के लिए प्रमुख भूमिका निभाते हैं।

बच्चा समाज के नियमों, समाज में कैसे रहना चाहिए वो सब कुछ शिक्षक के द्वारा सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है, जब वह उस समाज की इतिहास से अभिमुख होता है।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुरेव परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः।।

संसकृत का यह स्लोक बताता है, कि गुरु एक भगवान का रुप है और हमे उन्हे नमन् करना चाहिए।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को आप जानते ही होंगे – वह भारत के पहले उपराष्ट्रपति थे। वे पूरी दुनिया को ही एक विद्यालय के रूप में देखते थे। वे एक विद्वान शिक्षक थे। उन्होंने अपने जीवनकाल के अमूल्य 40 वर्ष तक एक शिक्षक के रूप में इस देश के भविष्य को सुधारने में लगे रहे।

लेकिन इनकी कहानी सिर्फ यही तक सीमित नहीं है। ये एक हिन्दू संस्कृति का गौरव और निर्जन पश्चिमी संस्कृति के विरुद्ध हिन्दूवाद की रक्षक थे। दुनिया के सारे टीचर्स के लिए ये एक इंस्पिरेशन हैं। इनके आइडियाज ने पूरे देश में क्रांति ला दी थी।

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डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर 1888 तमिलनाडु के तिरुताणी गांव में हुआ था। ये एक ब्राह्मण परिवार से थे। इनका पालन-पोषण एक ऐसी जगह पर हुआ जहां पर बहुत सारी मंदिर है, जैसे- तिरुपति। यहां पर स्पिरिचुअल नॉलेज को ऊपर रखा जाता था। बहुत ही कम उम्र में प्राकृत पाली और संस्कृत के श्लोक में निपुण हो गए थे। इनके पिता जी एक सरकारी ऑफिसर होने के बावजूद भी वे अपने बेटे को पंडित बनाना चाहते थे।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी एक ऐसे इंसान थे, जो हमेशा से इंसानियत को महत्व दिया और उसको हमेशा से सबसे ऊपर रखा। 1911 में इन्होंने एक पेपर छापा “The Ethics of the Bhagavadgita and Kant” जिससे पूरे दुनिया में धमाल मच गया। इन्होंने जितने भी किताब या फिर कोई भी पेपर वर्क, वो सब बहुत ज्यादा प्रेरित करने वाला है।

उनकी शुरुआती पढ़ाई K.V High School, तिरुताणी से हुई थी। उसके बाद फिर 1896 में ये Hemsberg Evangelical Lutheran Mission School, Triupati हुआ। बहुत ही कम उम्र में मास्टर्स की डिग्री ले ली थी। इनको बहुत सारी स्कॉलरशिप जिसे वे आगे कि पढाई पूरी कि। 1906 में फिलासफी डिग्री से ग्रेजुएट हुए थे।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन कोई बहुत बड़ी क्रांतिकारी नहीं थे, लेकिन उनकी सोच ने क्रांति ला दी थी। जब ब्रिटिशेर्स भारत में आकर पैसे और ताकत से शासन चलाकर उन्हे पीटते थे, यहा के कल्चर को बरबाद कर रहे थे, यहा के लोगो के बिच टकराव ला रहे थे, एक दूसरे के लिए नफरत पैदा कर रहे थे, धर्म बदलवा रहे थे। लेकिन डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्ण जी इस फिलॉसफी के अगेंस्ट खड़े हो गए और उन्हें गलत साबित किया। जिससे ब्रिटिशर्स भी इनके आगे झुकने लगे। हमेशा से इंडियन फिलॉसफी और हिंदुइसम को प्रोटेक्ट करते हुए नजर आएंगे। पर उनहोंने जिंदगी में कभी भी कोई भी इंस्टिट्यूशन या धर्म को ठेस नहीं पहुंचाई।

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डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्ण जी के गुरु स्वामी विवेकानंद जी का कहना था कि तुम सिर्फ अच्छे कर्म करो।

16 साल में ही इनकि शादी हो गई। 5 बेटियां थी और एक बेटा था। 1956 में इनकी पत्नी शिवा कन्नू की डेथ हो गई।

अप्रैल 1909 में इनको मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज का हेड चुना गया, वहां पर डिपार्टमेंट ऑफ फिलॉसफी पढ़ाते थे।

इनके आइडिया ने तो पूरे देश में हड़कंप मचा दिया था। पॉलिटिक्स में थे नहीं फिर भी नेहरू जी ने इनको खोज कर लाए। ये फिर पॉलिटिक्स में shadow की तरह रहते थे। वह हमेशा से इंडियन स्पिरिट और इंडियन कल्चर की रक्षा करते हुए सामने आते थे। वे इसके खिलाफ थे, कि किस तरह यूनिफॉर्म वेस्टर्न कल्चर हमारे देश के कल्चर को दबा रहा था।

जब यह प्रेसिडेंट बने तब इनकी तनख्वा 10,000 थी। जिसमें से यह ढाई हजार रखते थे बाकी सब यह प्राइम मिनिस्टर रिलीफ फंड के लिए दे देते थे।

डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्ण एक सेल्फ्लेस्स इंसान थे। हमेशा से वे सोशल वर्क में ही लगे रहते थे- सिर्फ लोगों के बारे में सोचते थे और सबको इंसानियत को ऊंचा रखने की सीख देते थे।

इन्हें 16 बार नोबेल प्राइज के लिए नॉमिनेट किया गया था और 11 बार पीस प्राइस के लिए नॉमिनेट किया गया था। 1954 में भारत रत्न मिला था जब भारत रत्न शुरू हुआ था।

राष्ट्रपति बनने के बाद उनके मित्रों और उनके छात्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की इच्छा रखी। तभी डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने कहना कि- उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाएगा, तो उन्हें बहुत गर्व होगा। शिक्षा के क्षेत्र में उनके योगदान को देखते हुए 1962 से हर वर्ष उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।

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जहां टीचर्स डे भारत में 5 सितंबर को मनाया जाता है, वही बाकी देशों में इस दिन को 5 अक्टूबर के दिन मनाया जाता है।

एक शांत मन पूरे समुंद्र को कंट्रोल कर सकता है, जैसा इनका व्यवहार था।

आप सभी को शिक्षक दिवस की शुभकामनाएं!
Happy Teachers day!