छठ पूजा पर 700 शब्दों का निबंध | Chhath Puja Par Nibandh Hindi Mein
हिन्दुओं के प्रसिद्ध त्योहारों में से एक छठ वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहला है चैती छठ और दूसरा है कार्तिकी छठ। चैती छठ को चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। वहीं कार्तिकी छठ कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। ये ज्यादातर अक्टूबर या नवंबर में पड़ता है। पूजा में छठ माता की पूजा और सूर्य को अर्घ दिया जाता हैं। छठ एक प्राचीन हिंदू वैदिक त्योहार है जो ऐतिहासिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप का मूल निवासी है, विशेष रूप से, भारतीय राज्य बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश मानते हैं। छठ पूजा सूर्य और षष्ठी देवी (छठी मैया) को समर्पित है, ताकि वे पृथ्वी पर जीवन को बेहतर बनाए और इसके लिए हम इन्हें धन्यवाद करते हैैं।
इस त्योहार में मूर्ति पूजा नहीं होती है। षष्ठी माता और सूर्य भगवान सूर्य ने अपनी पत्नी उषा और प्रत्यूषा (डॉन और डस्क) की देवी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि सूर्य की शक्तियों के मुख्य स्रोत उनकी पत्नी उषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ दोनों शक्तियों की संयुक्त पूजा होती है। सुबह सूर्य की पहली किरण (उषा) की पूजा और शाम को सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) इन दोनों को अर्पित की जाती है। ये बोहोत कठोर हैं और चार दिनों की जाती हैं। ये पवित्र स्नान, उपवास से लेकर, लंबे समय तक पानी में खड़े रहते हैं, और अस्त और उगते सूर्य को प्रसाद और अर्घ्य देते हैं। कुछ भक्त एक वेश्या मार्च भी करते हैं।
पर्यावरणविद् का दावा है कि छठ सबसे अधिक पर्यावरण के अनुकूल हिंदू त्योहार है। कई लोग तो अपने घरों में छोटी नदी बनवा के उसी में पूजा करते हैं। और काफी लोग तो गंगा घाट या कोई घाट जाकर पूजा करते हैं।
वह दृश्य ही बोहोत अलग रहता है। पूजा का माहौल रहता है। लोग नए कपड़े पहनते है और बच्चों को तो बोहोत आनंद आता है। हमारे यहां इसकी बोहोत मान्यताएं है। ये पूजा बोहोत लोग को कबूलते है उसके लिए भी करते हैं। घाट जाने का अलग ही आनंद रहता है। घाट का दृश्य तो मानो लोगों में ही दिखाई देता है। सब लोग सूर्य का उत्सुक होके इंतज़ार करते हैं। चाहे वो सुबह हो या साम । और वहां भीड़ भी काफी रहती हैं। कई लोग तो रात भर वहीं रह जाते है। लोग साम में जाते है जैसे उन्हें सुविधा हो और फिर सुबह जल्दी उठ के नहा के जाते है। इधर पूजा का माहौल एक तरफ और उधर मेला के एक तरफ। जाते समय आपको रास्ते में काफी नए खिलौने, बलून, गुड़िया इत्यादि काफी चीज़े दिखाई देती हैं। बच्चों का तो हर कुछ मनपसंद होता है। और वहां कहीं पर खाना पानी भी रहता है।
छठ चार दिनों तक चलने वाला त्योहार है। इसकी शुरुआत नहाय – खाय से होती है। इस दिन गंगा के पवित्र जल से स्नान कर के खाना बनाया जाता है। इस दिन चने की दाल, लौकी की सब्जी और रोटी खाया जाता है। नहाय – खाय के बाद खाने में नमक का प्रयोग नहीं किया जाता है। दूसरे दिन को खरना के नाम से जाना जाता है। खरना के दिन व्रत करने वाले लोग प्रसाद बनाते हैं। खरना के प्रसाद में खीर बनाई जाती हैं। शाम को पूजा के बाद प्रसाद को खाया जाता है। प्रसाद खाने के बाद निर्जला व्रत शुरू होता है। तीसरे दिन नदी किनारे छठ माता की पूजा की जाती है। पूजा के बाद डूबते हुए सूर्य को दूध और जल से अर्घ दिया जाता है। इसके साथ ही छठ का विशेष प्रसाद ठेकुआ और फल चढ़ाया जाता है। इस त्योहार के आखिरी दिन सूर्य के उगते ही सभी के चेहरे खिल उठते हैं। व्रत करने वाले पुरुष और महिलाओं के द्वारा उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है। सूर्य को अर्घ देने के बाद व्रत करने वाले लोग प्रसाद खा कर अपना व्रत खोलते हैं। इसके बाद सभी लोगों में प्रसाद बांट कर पूजा संपन्न की जाती है। हिंदुओ में ये पूजा का बोहोत महत्व है। लोग इसे बोहोत शुद्ध मन से करते है।
छठ पर्व पति और संतान की दीर्घायु के लिए किया जता है। मान्यताओं के अनुसार सच्चे मन से छठ व्रत करने पर सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसी मान्यता है की छठ पर्व पर व्रत रखने वाली महिलाओं को पुत्र की प्राप्ति होती है। महिलाओं के साथ पुरुष भी अपने कार्य की सफलता और मनचाहे फल की प्राप्ति के लिए इस व्रत को पूरी निष्ठा और श्रद्धा से करते हैं।
छठ पूजा पर 300 शब्दों का निबंध
लोक आस्था का पर्व छठ हमारे देश में मनाया जाने वाला प्रमुख त्योहार है। छठ पर्व साल में दो बार होता है। पहली बार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को और दूसरी बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। षष्ठी को मनाने के कारण इसका नाम छठ व्रत रखा गया है। दोनों में कार्तिकी छठ ज्यादा प्रचलित है। यह छठ माता की पूजा और सूर्य की उपासना का पर्व है। मुख्य रूप से इस त्योहार को बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश में मनाते हैं। धीरे – धीरे यह त्योहार देश के अन्य शहरों में भी प्रचलित हो गया। प्रवासी भारतीयों के साथ यह पर्व विश्वभर में प्रचलित हो गया है। नेपाल और मॉरीशस जैसे देशों में इसे बहुत धूमधाम से मनाया जाता है।
इस पर्व में छठ माता की पूजा की जाती है। इसके साथ ही गाय के कच्चे दूध और जल से सूर्य को अर्घ दिया जाता है। चार दीनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय – खाया से होती है। दूसरे दिन खरना किया जाता है। तीसरे दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ देने की परंपरा है। चौथे यानि आखिरी दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ दिया जाता है छठ पूजा को डाला छठ के नाम से भी जाना जाता है। इस महत्वपूर्ण त्योहार में सूर्य (भोर) की स्थापना की जाती है। त्यौहार इस विश्वास के साथ मनाया जाता है कि सूर्य देव इच्छाओं को पूरा करते हैं अगर ‘अर्घ्य’ पूरी समर्पण और भक्ति के साथ दिया जाता है।यह त्यौहार पृथ्वी को ऊर्जा प्रदान करने के लिए सूर्य देव को धन्यवाद देने के उद्देश्य से व्यक्त करने के उद्देश्य से है, ताकि लोगों को रहने के लिए उपयुक्त वातावरण उपलब्ध हो सके। सूर्य देव के साथ लोग इस दिन ‘छठी मैया’ की पूजा करते हैं। इस त्यौहार पर भक्त नदियों और तालाबों में घाटों पर इकट्ठा होते हैं और प्रसाद (प्रसाद) तैयार करने से पहले पवित्र स्नान करते हैं।