जब घोर घने अंधियारे में ये जीव बना…बना तन मन
जब जीवन का आरम्भ हुआ तुम प्राण सृजन कर साँस बनी।
जन्म दिया इस धरती पर निज तन से सिंचित…पोषित कर
न जाने कितने कष्ट सहे …कितनी राते जागी लेकर।
पल में गिरना …रोना …लड़ना …फिर उठना तेरे साहस से
आँखों का काजल …मोर मुकुट …राजा बेटा सब याद मुझे।
झूंठे आंसू जब भी निकले …हठ के …या मांग खिलौने के
तेरे नैनो से नीर बही … ममता का आँचल साथ लिए ।
विद्यालय का पहला दिन वो …जब दूर हुआ कुछ पल के लिए
है याद मुझे वो अश्रुधार जो दिनभर थे अनवरत बहे ।
माँ तेरी ममता और स्नेह की शीतलता का छाव ही था
जाने कब फिर कब मै बड़ा हुआ कब पैर जमे … कब पंख लगे ।
ना जाने कितने अब बसंत है जीवन के इस बीत चुके
संघर्ष पथिक से जीवन के सुख दुःख आये और चले गए ।
पर माँ तेरे चरणों की शीतल छाँव कही भी मिल न सकी
सारे रिश्ते है स्वार्थ रूप …एक तू जननी माँ सरस्वती ।