महाशिवरात्रि पर्व के बारे में जानिये

महाशिवरात्रि हिंदुओं का एक प्रमुख त्योहार है। यह विश्व में कई जगहों में मनाई जाती है। महाशिवरात्रि रात्रि में मनाए जाने वाला एक प्रमुख पर्व है। वैसे तो इसकी तैयारी सुबह से ही शुरू हो जाती है परंतु इसका विशेष महत्व रात्रि में ही है। यहां हिंदू कैलेंडर के अनुसार गर्मियों के आने से पहले यानी फाल्गुन माह में 13 या 14 दिन में मनाया जाता है। यह त्यौहार सभी के लिए खास महत्व रखता है जैसा कि हम सब जानते हैं हिंदुओं के कुल 33 करोड़ देवी देवता है उन सभी देवी देवताओं में भगवान शिव का स्थान सबसे ऊपर है उन्हें सभी देवी देवताओं के भी देव माना जाता है इसलिए यहां त्यौहार सभी हिंदुओं के लिए एक खास महत्व रखता है। सभी हिंदू इस त्यौहार को मन प्राण व बड़ी ही श्रद्धा के साथ मनाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि सभी देवी देवता इतनी जल्दी प्रसन्न नहीं होते इतनी जल्दी भगवान शिव होते हैं इसलिए लोग उनकी उपासना नियमित करते हैं। महाशिवरात्रि के इस पर्व में भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह को भी दर्शाया जाता है।कई जगह पर माता पार्वती की डोली और शिव की बारात भी निकाली जाती है।आइए आज जानते हैं महाशिवरात्रि के बारे में।

क्या आपको पता है महाशिवरात्रि को महाशिवरात्रि ही क्यो जाता है?

भगवान शिव छः माह कैलाश पर्वत पर अपनी तपस्या मी लीन रहते थे। 6 माह बाद जब वे अपनी तपस्या छोड़कर वापस धरती पर आकर श्मशान घाट पर निवास करते थे तब यह दिन प्रायः फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को पङता था इसलिए इस महान दिन हो शिव भक्तों द्वारा महाशिवरात्रि के का नाम दिया गया और इस दिन को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाने लग गया।

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शिवरात्रि का क्या महत्व है?

आइए आपको बताते हैं शिवरात्रि का क्या महत्व है। इस दिन शिव मंदिरों को फूलों व पंडालों को से सजाया जाता है या फिर सार्वजनिक तौर पर शिव जी की मूर्ति की पूजा उपासना की जाती है।भक्त जन निर्जला उपवास रखते हैं। शाम के समय अपने सामर्थ्य के अनुसार फल फूल बेलपत्र गुलाल भांग धतूरा भगवान शिव को भेट स्वरुप चढाया जाता है । फिर जल दूध व जल मिश्रित दूध से उनका अभिषेक किया जाता है।इस पर्व को लोग बड़े ही श्रद्धा वो भाव के साथ मनाते हैं। यह पर्व सब के जीवन में हर्षोल्लास का भाव लाता है।शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को सभी जीव जंतुओं के नायक वह नाथ माना गया है। जब भगवान शिव 6 माह कैलाश पर्वत पर तपस्या करते थे तब सारे कीड़े मकोड़े भी अपने अपने बिलों में बंद हो जाते थे।

भगवान शिव के नाम

भगवान शिव के कुल 108 नाम है। जैसे शिवम शंभू शंकर भोलेनाथ पशुपति त्रिनेत्र इन्हे इन नामों से भी इनकी उपासना की जाती है और इन्हें इन नामों से भी पुकारा जाता है।

शिवरात्रि में गंगा स्नान का क्या महत्व है?

शिवरात्रि में गंगा स्नान का भी एक बहुत अहम महत्व है क्योंकि भगवान शिव ने गंगा के तेज धारा को अपने जटाओ में धारण कर लिया था और उसे धरती पर छोड़ा था इसलिए इस दिन गंगा स्नान का भी एक विशेष महत्व है तथा लोग शुद्धिकरण के लिए भी गंगा स्नान करते हैं।

महाशिवरात्रि की कथा

पूर्व काल में एक शिकारी जिसका नाम चित्र भानु था। वह शिकार करके ही अपना परिवार चलाता था। उसने एक साहूकार से कर्ज ले रखा था। लेकिन उसका रिंग वह समय पर ना चुका सका इसलिए गुस्से में साहूकार ने उसे शिव मठ में ही बंदी बना लिया संयोग से उस दिन शुभ रात्री थी वह शिव की भजन कीर्तन कथा को बड़ी ध्यान से सुन रहा था अगले दिन साहूकार मैं जब उसे कल के बारे में पूछा तो चित्र भानु ने अगले दिन ऋण भरने का वादा किया और वह शिकार करने चला गया शिकार करते करते वह बड़ा दूर निकल गया जिस कारण से जंगल में ही रात गुजारी पड़ी। वह भूख से व्याकुल हो रहा था। उसे एक नदी लिखी और वहां बहुत में धोने चला गया नदी के ठीक सामने एक बेल का पेड़ था और उसके नीचे एक शिवलिंग थी जब वह हाथ मुंह धो रहा था तब पानी के कुछ छींटे शिवलिंग पर पड़े। बाद में वह बेल की पेड़ पर चढ़ कर बैठे गया। तभी बेल के पेड़ से टहनी काटते वक्त बेल की कुछ पत्ते शिवलिंग पर पड़े इस प्रकार उसके रात्रि के पहर की शिव पूजा हो गई। पहले शहर में उसने एक हिरण को देखा और उसने अपनी वाण निकाली तब हिरन उसे बताया कि वह गर्भवती है यदि चित्र भानु से मारेगा तू वहां एक नई बल्कि दो जान ले लेगा इससे उसे पाप लगेगा तो उसने अपनी वाण वापस रख ली। वाण वापस रखते वक्त बेल के कुछ पता वापस शिवलिंग पर पड़ी इस प्रकार उसके पहले पहल की भी शिवलिंग पूजा संपन्न हो गई। द्वितीय पहर में उसने वापस एक हिरण को देखा उसने वापस अपनी वाण तानी उसी रहने अपने पति से मिलकर आने का वादा किया तो शिकारी ने वापस अपनी वाण अंदर रख ली तभी बेल के पेड़ से कुछ और पत्ते शिवलिंग में गिरी इस प्रकार उसके द्वितीय पहर की भी पूजा संपन्न हो गई। इस प्रकार उसकी मृत्यु हो गई। जब यम दूत उसे यमलोक लेकर जा रहे थे तब शिवगणो ने उसे शिवकुल भेज दिया और उसे मुक्ति प्राप्ति हुई। और अगले जन्म वह राजा चित्र भानु बना। तथा शिव जी कृपा से उसे पिछले जन्म की बात याद रखने की क्षमता भी मिली थी।

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इसी प्रकार शिवरात्रि में शिव की पूजा आराधना करनी चाहिए तथा इस दिन दान पुण का भी एक बहुत बड़ा महत्व है। इस दिन दान पूर्ण करने से लोगों को पुणे मिलता है तथा भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। इस दिन सुहागिन स्त्रियों अपने पति के लंबी उम्र के लिए शिव का निर्जला उपवास करती हैं तथा कई लोग अपने मनोकामना पूरी करनी के लिए और शिव को प्रसन्न करने के लिए इस पूजा को करते हैं। यह पूजा अलग-अलग जगह पर अलग-अलग तरीके से बड़े ही हर्ष व उल्हास के साथ मनाया जाता है।