नक्सलवाद (Naxalism) पर निबंध | Essay on Naksalavaad in Hindi

नक्सलवाद दमनकारी नीतियों मनुवादी सोच और नया हिंसा के परिणाम स्वरूप उत्पन्न हुआ क्रांतिकारी आंदोलन का रूप है जो समय के साथ-साथ विक्रांता से फैलता गया और अपने विशिष्ट भयावह रूप से लोगों को डराता रहा। यह भारतीय कम्युनिस्ट आंदोलन के बाद से उत्पन्न हुआ था। गरीबों के ऊपर जुल्म अन्याय और अत्याचार लंबे समय से चलती आ रही है। इस दमन से गरीब वर्गों में हताशा और शासन से निराशा ही इसका मुख्य कारण है। जमींदारों द्वारा गरीब लोगों की खेत पर अपना अधिकार जमा कर उसे हथिया लिया जाता था। शासन-प्रशासन पूंजीपतियों के इशारे पर काम करते थे। अपनी ही जमीन पर मजदूर के रूप में काम करने को बेबस था। इन्हें ढंग सेखाना पहनावा भी नहीं मिल पाता था। इन के मजबूरी का फायदा उठाकर इनके इज्जत के साथ खिलवाड़ किया जाता था। इन के बहन बेटियों के साथ रखैल की तरह सलूक किया जाता था। इस सबसे इनके मन के भय ने गुस्सा और सरकार के खिलाफ बगावत का रूप ले लिया। गरीब मजदूर वर्ग ने अपनी इज्जत और अस्मिता बचाने के लिए हथियार उठा लिए। फिर यहीं से नक्सलवाद का जन्म हुआ। असल में नक्सलवाद समाज में फैली बुराई ऊंच-नीच छुआछूत दमन जैसी घटनाओं का देन है। गरीब आदिवासी समाज को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल पाती थी जिससे इनकी दैनिक जिंदगी बद से बदतर होती जा रही थी और सरकार इन पर ध्यान नहीं देती थी। इससे इस समुदाय को लगने लगा कि अब शस्त्र उठाना जरूरी है अन्यथा हम अपनी पहचान और अस्मिता को खो बैठेंगे। इन लोगों के मन में धरना बैठ गई कि हथियार के दम पर हम अपना वर्चस्व कायम करेंगे तथा सब में हमारा डर रहेगा और सरकार मेरी हर बात मानेगी। असल में यह एक राजनीतिक पार्टी है जिसे कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी कहा जाता था जिस के क्रांतिकारी आंदोलन के परिणाम स्वरूप नक्सलवाद फैला परंतु अब यह खतरनाक हो गया है अब यह कुछ व्यक्तियों के व्यक्तिगत लाभ के लिए गरीब अनपढ़ लोगों को बहला-फुसलाकर सरकार विरोधी बातें, हत्या, लूट और अपहरण जैसे कार्य को अंजाम देती है।

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नक्सलवाद का इतिहास

संवाद शब्द की उत्पत्ति नक्सलवाड़ी गांव से हुई थी जो कि पश्चिम बंगाल में है। यहीं से नक्सलवाद की शुरुआत भी हुई थी सन 1969 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने सरकार के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन शुरू किया। मजूमदार चीन के कम्युनिस्ट नेता माओ त्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसक थे। इसी वजह से नक्सलवाद को माओवाद भी कहा जाता है। 1968 में सीपीएमएल का गठन हुआ जिसके मुखिया दीपेंद्र भट्टाचार्य थे। यह लोग मार्क्स और लेनिन से प्रभावित थे इसीलिए उनके सिद्धांतों पर काम करने लगे। जमीन दारी और भूमि अधिग्रहण से प्रभावित होकर पहली बार 1969 में चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने पूरे देश में सत्ता के खिलाफ सशस्त्र बगावत की मुहिम छेड़ दी। क्योंकि आवाज नक्सलवाड़ी गांव से उठाया गया था इसीलिए इसका नाम नक्सलवाद पड़ गया। इस आंदोलन का प्रभाव इतना व्यापक था कि सन 1977 में पश्चिम बंगाल से कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा और पहली बार कम्युनिस्ट पार्टी बंगाल में सत्ता में आए और ज्योति बसु पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री बने। लेकिन धीरे-धीरे इस आंदोलन में व्यापक बदलाव हुआ कुछ सालों बाद इस आंदोलन ने अपना मुख्य सिद्धांत को खो दिया। जिसका मुख्य कारण था राजनीतिक वर्चस्व। सामाजिक बदलाव के उद्देश्य आरंभ किया गया यह आंदोलन जब बिहार तक पहुंचा तब यह अपनी आधारशिला खो चुका था। यह भूमि अधिग्रहण की लड़ाई जातिगत लड़ाई का रूप लेने लगी थी या फिर ले चुकी थी। फिर इसने उच्च वर्ग और नीच वर्ग के बीच उग्र संघर्ष का रूप बन गया। नक्सलवाद अपने मूल रास्तों से पूरी तरह भटक चुका था। वादियों की सबसे बड़ी सेना श्री राम सेना ने सबसे पहले उच्च वर्गों के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। 1972 में चारू मजूमदार को आंदोलन के हिंसक हो जाने के कारण गिरफ्तार कर लिया गया और 10 दिनों के जेल के दौरान ही उनकी मृत्यु हो गई। कानू सान्याल ने आंदोलन की राजनीति शिकार होने के कारण और अपनी पार्टी को मुद्दों से भटकने के कारण 23 मार्च 2010 को आत्महत्या कर लिया। आज बहुत से नक्सलवादी संगठन संवैधानिक रूप से राजनीतिक पार्टी बन गया है और चुनावों में भी भाग लेता है। परंतु बहुत से संगठन अभी भी हिंसक बने हुए हैं। नक्सलवाद के भटकते मुद्दों की मार सबसे ज्यादा आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, झारखंड और बिहार ने झेली।

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नक्सलवाद की घटनाएं

2007 ईस्वी में 300 से ज्यादा नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर में 55 पुलिसकर्मियों को मार दिया था। सन 2008 को नयागढ़ उड़ीसा में 14 पुलिसकर्मियों तथा एक नागरिक की हत्या नक्सलियों द्वारा किया गया था। सन 2009 महाराष्ट्र के गढ़चिरौली में 15 सीआरपीएफ जवानों की हत्या वादियों द्वारा कर दी गई थी यह एक बहुत बड़ी घटना थी। सन 2010 में मां वादियों ने डेढ़ सौ यात्रियों की हत्या कोलकाता मुंबई ट्रेन में घुसकर कर दी थी तथा इसी वर्ष 24 अर्धसैनिक बलों को पश्चिम बंगाल के सिल्दा कैंप में घुसकर मार दिया था। 2011 में दंतेवाड़ा छत्तीसगढ़ में 76 जवानों तथा पुलिसकर्मियों की हत्या वादियों द्वारा कर दी गई थी। 2012 में झारखंड के गढ़वा जिले के समीप बरिगंवा जंगल में मोवादियों ने 13 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी थी। इस तरह की अनेक हिंसक घटनाएं हैं जिसे नक्सलियों द्वारा अंजाम दिया गया है।

निष्कर्ष

नक्सलियों को समाप्त करने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही है। जिसमें मुख्यधारा से जोड़ने शिक्षा स्वास्थ्य आदि योजनाएं शामिल हैं। सरकार इन माओवादीयों‌ को एक मौका देती है मुख्यधारा में शामिल होने का। सरकार तरह-तरह की कार्रवाई भी कर रही है ताकि इस को बढ़ावा देने वाले तथा इसके मुख्य सरगना को रोक सके। इनको सरकारी सुविधाएं का प्रलोभन के साथ-साथ सैनिकों द्वारा भी समय-समय पर समाप्त करने का प्रयास होता रहा है। हमारे जवानों द्वारा इसके खात्मे के लिए कई बड़े छोटे ऑपरेशन को अंजाम दिया गया है। इसे रोकने के लिए जागरूक होना तथा इन्हें जागरूक करना अति आवश्यक है।

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सैनिकों द्वारा किए गए कुछ महत्वपूर्ण ऑपरेशन

ग्रीन हंट अभियान 2009 में चलाया गया था छत्तीसगढ़ आंध्र प्रदेश महाराष्ट्र था झारखंड में चलाया गया अभियान था। इसमें पैरामिलिट्री तथा राष्ट्रीय पुलिस ने भाग लिया था। 3 जून 2017 को छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सुरक्षाबलों के जवानों द्वारा प्रहार नामक अभियान चलाया गया। यह बहुत बड़ा अभियान था इस अभियान में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कोबरा कमांडो छत्तीसगढ़ पुलिस डिस्टिक रिजर्व गार्ड इंडियन एयर फोर्स के एंटी नक्सल टास्क फोर्स ने भाग लिया। 25 जून 2017 को खराब मौसम के कारण इसे बंद कर दिया गया। सन 1971 में अब तक का सबसे बड़ा स्टीपेलचेस नामक अभियान चलाया गया था। भारतीय सेना तथा राज्य पुलिस ने मिलकर इस अभियान के दौरान 20,000 नक्सली मारे थे।