एक गांव में अमर चंद्र नाम का एक शिक्षक अपने एक सेवक अरविंद के साथ रहता था। अमरचंद एक करुणामय तथा परोपकारी सरल चित व्यक्ति था।जिसके कारण पूरे गांव से शिक्षक अमर चंद्र को मान सम्मान मिला करता था।
शिक्षक अमर चंद्र भी गांव के सभी बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सही मार्गदर्शन दिया करता था। गांव में किसी के यहां विपत्ति आने पर बढ़ चढ़कर भाग लेने में भी वे पीछे नहीं रहते।
एक बार अमर चंद्र अपने सेवक अरविंद के साथ एक दूसरे गांव से गुजर रहे थे तभी उन्हें पता चला की जय राम नामक एक दानवीर परोपकारी दयालु सज्जन व्यक्ति जो उस गांव के थे मृत्यु हो गई है और उसकी स्त्री के पास उसके अंतिम संस्कार करने तक के पैसे नहीं है।
अमर चंद्र जयराम को जानते तक नहीं थे। बस पूछताछ करके उसके घर पहुंच गए। जय राम की मृत शरीर के पास रोती बिखलती उसकी पत्नी को उसने ढांढस बांधते हुए कहा भाभी जी जय बाबू ने मुझे कुछ दिन पहले कर्ज दिया था।
मैं उसी कर्ज का कुछ रुपया लेकर आ ही रहा था की रास्ते में मैंने जय बाबू की यह दुखद समाचार सुना। कृपया करके यह रूपेया लीजिए। बाकी मैं धीरे-धीरे कर चुका दूंगा।सेवक अरविंद यह सब देख कर अर्श्चकित रह गया। जयराम की विधवा ने सधन्यवाद वह राशि ले ली।
कई वर्षों तक अमर चंद्र ने अपने सेवक अरविंद के हाथों हर महीने एक निश्चित राशि जयराम के पत्नी को भेजते रहे। एक दिन अमर चंद्र का सेवक अरविंद ने जय राम की पत्नी को सारी वास्तविकता बता दी।
जयराम की पत्नी को जब वास्तविकाता का पता चला तो अमर चंद्र के अनूठे झूठ पर वह चकित रह गई। अपने लड़कों के साथ वह अमर चंद्र के पास गई और उनके पैरों पर गिर कर रोने लगी। रोते-रोते बोली आपने मेरे लिए इतना बड़ा झूठ बोला हम इसको कैसे चुका पाएंगे।
शिक्षक अमर चंद्र ने कहा यदि झूठ पवित्र हो तो बोलने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। दया से डूबा हृदय दूसरों के परोपकार के लिए अगर किसी प्रकार के झूठ बोला जाए तो उससे पाप नहीं लगता।।