जिस प्रकार प्रकृति का नाम सुनते ही या बोलते समय मन में शांति और सुकून मिलता है, उसी प्रकार प्रकृति अपने अनमोल उपहार- अपनी खूबसूरती से सबको भाग लेती है।
हमारे पर्यावरण में यानी इस पूरे ब्रह्मांड में जो कुछ भी उपस्थित है, वो सब ईश्वर का देन है और उसे प्रकृति का नाम दिया गया है।
हरी-भरी धरती, पहाड़, नदी, सूर्य मंडल, आकाश, सूर्य, समुद्र, मेघ बिजली, वृक्ष, पशु-पक्षी, उषा की अरुणिमा, इंद्रधनुष, हरियाली, औस, लहराता खेत, नदी की उन्मत्त लहरें आदि।
प्रातः कालीन उषा मंडित, हरियाली पर टहलते समय, वृक्ष की डाली पर बोलते पक्षियों को देखकर तथा आकाश में उड़ते पक्षियों को देखकर सहसा मन मयूर नाच उठता है।
इसका एक कण भी आप नहीं दे सकते।
प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों और चेस्टओ का प्रभाव मनुष्य पर पड़ता है और वे ही उसके अभीव्यंजन के विषय बनते हैं।
प्रकृति हमें एक चीज जरूर सिखाती है- जैसे को तैसा।
“कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन्।
मा कर्मफल हेतुभूर्मति सङ्गोस्त्वकर्मणि।।”
अर्थात प्रकृति कहती है- हम जैसा कर्म करेंगे, हमें वैसा ही फल मिलता है।
प्रत्येक प्राणी कर्म करने के लिए स्वतंत्र है, परंतु उन कर्मों का फल ईश्वर ही देता है और प्रत्येक प्राणी को अपने कर्मों का जो भी फल हो भोगना ही पड़ता है।
प्रकृति के इस संबंध में एक उदाहरण उपस्थित है- हम बीज बोकर अर्थात कर्म करके भूल जाते हैं, किंतु बीज उगना नहीं भूलता।
दैनिक एवं नियमित कर्मों से जब भी मनुष्य का मन ऊबा तब-तब उसने प्रकृति का आश्रय लिया।
आज भी सितारों से जगमगाता आकाश एवं सरिता की उन्मादिनी तरंगों को देखकर मानव आत्म-विभोर हो जाता है।
पृथ्वी एक मात्र ग्रह है जहां पर जीवन को सामर्थ करने के लिए जाना जाता है।
जी और वन के मिलन को जीवन कहते है।
जी का अर्थ होता है- प्राण और वन का अर्थ होता है- प्रकृति। इन दोनों के मिलन से ही जीवन का प्रारंभ होता है।
इस जीवन- जो हर प्राणी में हर जीव जंतुओं में उपस्थित है। इस जीवन को सुरक्षित रखने के लिए मानव को कुछ अच्छा कदम उठाना होगा जिससे प्रकृति अपनी खूबसूरती, अपनी सुंदरता को बनाए रखें।