शिक्षा व्यवसाय नहीं हमारा अधिकार है

शिक्षा सुनहरे भविष्य की परिकल्पना तथा मजबूत समाज का आधारशिला है। शिक्षा मतलब ज्ञान, विवेक, शिष्टाचार, व्यवहार का समावेश है। शिक्षा मानव समाज के विकास का मूल मंत्र है। वह शिक्षा ही है जो हमें धैर्य, साहस, शौर्य तथा सम्मान दिलाती है। चिंतन हो या आत्ममंथन शिक्षा की चोटी पर ही पूर्ण होती है। शिक्षा एक ऐसी शस्त्र है जो हमें कालांतर से जोड़ती है, वर्तमान में जीना सिखलाती है, तथा भविष्य का एहसास कराती है। शिक्षा अमूल्य है, शिक्षा आमोघ है, शिक्षा नाशवान है इसीलिए शिक्षा सार्वजनिक है। शिक्षा पर कोई एक व्यक्ति अपना अधिकार ना तो स्थापित कर सकता है ना ही उसे अपना बतला सकता है क्योंकि शिक्षा कंकण में समाहित है। शिक्षा व शब्द है जो हमें कर्तव्यनिष्ठ और जिम्मेदार नागरिक की ओर अग्रसर करता है।

हमारे मूल गुण में बदलाव कर उससे अच्छी तथा प्रबंधक गुण जो हमारे व्यवहार में एक अकल्पनीय परिवर्तन करें शिक्षा कहलाती है। शिक्षा पृथ्वी पर स्थित प्रत्येक व्यक्ति, संसाधन, सजीव-निर्जीव से प्राप्त होती है क्योंकि यह सर्वत्र तथा सभी में समाहित होती है। शिक्षा कभी पूरक नहीं होती यह ज्ञान रूपी सागर होती है जिसकी गहराई में कोई तल तक नहीं जा सकता। जन्म के बाद से मृत्यु होने तक सभी सजीव प्राणी के गुण में एक स्वाभाविक परिवर्तन होता है जो व्यक्ति या किसी भी सजीव प्राणी में कुछ नया सीखने की पुष्टि करता है। वस्तुतः कुछ नया सीखना, अपूर्व ज्ञात ज्ञान प्राप्त करना ही वास्तव में शिक्षा है। शिक्षा का प्रचलन दैविक गुण है जिसे मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति तथा कठिन परिश्रम से अपने आप में समाहित करता है।

शिक्षा की प्रणाली तथा प्रभाव

पृथ्वी पर जीवन चक्र शुरू होने के साथ हुई शिक्षा की शुरुआत हो चुकी थी। शिक्षा का इतिहास अकल्पनीय है। समय के साथ-साथ शिक्षा के स्तर उसकी प्रणाली तथा शिक्षा की उपयोगिता में व्यापक बदलाव हुई है। समय की मांग के साथ साथ शिक्षा में कई बदलाव हुई है इसी के तहत शिक्षा प्राप्त करने के लिए संसाधनों में बदलाव है समय अनुसार हुआ है। पौराणिक काल तथा आधुनिक काल की शिक्षा व्यवस्था तथा शिक्षा के मतलब में भी अकल्पनीय परिवर्तन हुआ है।

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पौराणिक काल में शिक्षा की प्रणाली, स्तर तथा प्रभाव

पौराणिक काल में शिक्षा अध्यात्म पर निर्भर होती थी। इसीलिए पौराणिक काल के शिक्षा व्यवस्था को आध्यात्मिक शिक्षा व्यवस्था कहा जाता है। गुरु शिष्य परंपरा से अभिभूत यह शिक्षा आज भी हमारे समाज में अपनी अलग पहचान बनाई हुई है। गुरु शिष्य का ध्येय यहीं से है। पौराणिक काल में आध्यात्मिक शिक्षा के अंतर्गत आज की तरह वैज्ञानिक तरीके नहीं अपनाए जाते थे। आध्यात्मिक शिक्षा में आत्मचिंतन, मंथन और प्राकृत में विश्वास रखा जाता था। आज की आधुनिक शिक्षा जगत की तरह फीस की रकम नहीं वसूली जाती थी बल्कि छात्र अपने सामर्थ्य अनुसार अपने गुरु को श्रद्धा रूपी दक्षिणा दिया करते थे। आध्यात्मिक शिक्षा के बारे में माना जाता है कि उस समय की शिक्षा इतनी प्रबल थी कि मनुष्य ईश्वर तथा दूसरे ग्रह उपग्रहों के प्राणी से सीधा संवाद करते थे। वे पेड़ पौधों तथा जानवरों की भाषा भी बहुत अच्छी तरह से जानते थे। आज के समय से कहीं अत्यधिक विनाशकारी हथियारों का प्रयोग पौराणिक काल में होता था। मनुष्य का नियंत्रण सभी प्राकृतिक चीजों पर हुआ करता था और वह विधिवत प्रकृति के अनुरूप उसका उपयोग भी किया करते थे। जल, थल तथा नभ सभी जगह मनुष्य ने अपनी कुशलता और प्रबलता हासिल की हुई थी। पौराणिक काल में निर्मित बहुत सारे खंडहर हथियार तथा अन्य संसाधनों जिसे देखकर आज के मनुष्य तथा वैज्ञानिक अचंभित होते हैं बहुत से ऐसे संसाधन हैं जिसका जवाब आज भी वैज्ञानिकों के पास नहीं है। पौराणिक कालों के इतिहास, धर्म ग्रंथों में आध्यात्मिक शिक्षा का स्वरूप देखने को मिलता है।

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आधुनिक काल में शिक्षा की प्रणाली, स्तर तथा प्रभाव

आज के दिनों में शिक्षा वैज्ञानिक तथा व्यापारिक बन गई है। आधुनिक काल में वैज्ञानिक तरीकों से सिद्धांतों तथा मूल्यों पर आधारित शिक्षा व्यवस्था की नींव रखी गई है। पौराणिक कालों के विपरीत इस आधुनिक काल में शिक्षा प्राकृतिक के साथ प्राकृतिक के अनुरूप न चलकर प्राकृतिक के उपयोग से अथवा इसके दोहन से एक नए अविष्कार की तरफ चलती है। वास्तविक रूप से आज की शिक्षा पौराणिक कालों के इतिहास को दोहराने को उत्तेजित होती है परंतु यह तब तक संभव नहीं हो सकता जब तक प्राकृतिक से तालमेल बनाकर पौराणिक काल की शिक्षा प्रणाली नहीं अपनाई जाती। आधुनिक काल के शिक्षा ने कई महत्वपूर्ण तथा अचंभित कार्य भी किए हैं परंतु यह सिर्फ आज के हिसाब से अचंभित है जब पौराणिक काल की शिक्षा की ओर हम देखते हैं तब यह फीका पड़ जाता है। आधुनिक शिक्षा एक व्यापारिक शिक्षा है। इस शिक्षा को पाने हेतु सबसे अहम आवश्यक तथ्य आप की आर्थिक हालत होती है। आधुनिक शिक्षा तंत्र में शिक्षा की सभी करी लगभग एक दूसरे से जुड़ी हुई है जिसका बागडोर सीधा आर्थिक हालात के हाथों में होती है।

आपकी आर्थिक हालात यह निर्णय लेती है कि आपको कहां और कितना शिक्षा मिलनी चाहिए। आधुनिक शिक्षा व्यवसाय का सबसे अधिक मुनाफा वाला स्रोत है। शिक्षा में धांधली तथा घोटाले का सर्प इस तरह जकड़ा हुआ है कि कोई साधारण या अकेला व्यक्ति इसे काबू नहीं कर सकता। शिक्षा लगभग पैसों से मिलती है। आधुनिक शिक्षा इस बात पर भी जोर देती है कि आपकी धर्म और जाति क्या है। शिक्षा जो कि विचारों का समागम होता है यहां भी आरक्षण जैसे घटिया शब्द तथा नीति लागू की जाती है। आधुनिक शिक्षा व्यवसाय के साथ-साथ घटिया राजनीति का भी शिकार हो चुका है। आज के इस शिक्षा प्रणाली में हमेशा पैसों के आगे गुणवान और मेहनती को नकारा गया है। आज की आधुनिक शिक्षा पैसों की खेल है और राजनीति का मुद्दा बस। हर जगह शिक्षा उपलब्ध कराने और बेचने वाले दलाल तथा बिचौलिए आपको मिलेंगे। तरह तरह के लोभन प्रलोभन देकर छात्रों को बहका कर पैसा लूटने वाले लुटेरे आपको हर चौराहे और गली मोहल्ले में मिलेंगे। दरअसल शिक्षा ज्ञानो का समावेश होता है यह आपके मन, ध्यान और मेहनत के नतीजों का परिणाम होता है परंतु आज की शिक्षा व्यवस्था में एक कागज का टुकड़ा आपकी योग्यता को परखती है किसी भी चौराहे पर आपको बिकती मिलती है। आज की आधुनिक शिक्षा हमें अनुभव अर्जन की जगह पैसों की महत्वता बतलाती है।

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निष्कर्ष

सभी बातों को समझने के बाद एक बात स्पष्ट तौर पर दिखती है कि बिना आध्यात्मिक ज्ञानो‌ के समावेश, प्राकृतिक की समझ, प्राकृतिक का सदुपयोगिता से हम ज्ञान की वास्तविक रूप को नहीं पा सकते। शिक्षा व्यवस्था के साथ-साथ शिक्षा नीति भी अत्यंत आवश्यक है इसीलिए हमें आधुनिक शिक्षा नीति में परिवर्तन करनी होगी। हमें योग्य तथा अनुभव को उचित स्थान देना होगा। शिक्षा के व्यापार पर लगाम लगा कर बताना होगा कि शिक्षा व्यापार नहीं हमारा अधिकार है शिक्षा में राजनीति का शामिल होना अत्यंत आवश्यक है परंतु राजनीति में शिक्षा का उपयोग अपने स्वार्थ के लिए करने पर रोक लगानी होगी। शिक्षा का निजीकरण बंद होना इसका सबसे अच्छा उपाय हो सकता है। छात्रों को जागरूक होना होगा और इन शिक्षा के बिचौलियों से बचना होगा। तभी हम एक अच्छे शिक्षा व्यवस्था की स्थापना कर सकते हैं और तभी शिक्षा व्यवसाय नहीं हमारा अधिकार है सार्थक होगा।

तुम्हें डराया भी जाएगा, तुम्हें समझाया भी जाएगा, तुम्हें हर तरह से उकसाया भी जाएगा, परंतु हे भविष्य की उज्जवलकर्ता छात्र किसी भी परिस्थिति में तुम विचलित मत होना, बहुत सारे सीट है यहां, तुम सीट के लिए मत घबराना, बहुत सारे लुटेरे बैठे हैं यहां लूटने को, तुम लुटेरों से बच कर रहना।