स्टेथाॅस्कोप को हिंदी में परिश्रावक व आला व द्वीकर्णय यंत्र कहते है। यह यंत्र शरीर के अंदर की ध्वनियों को सुनने के लिए व रक्त संचार की दशा का पता करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसे ग्रीक भाषा “स्थेथोस” यानी छाती और “स्कोपस” यानी परीक्षण व जाँच। डॉक्टर व चिकित्सक इस यंत्र का उपयोग हृदय अँतङियो या श्वास की गति व ध्वनि को सुनने व जांच करने के लिए करते हैं। इसे अधिकतर डॉक्टरों के गर्दन अथवा चिकित्सकों की मेज पर देखा जाता है। जब हमारे हृदय, फेफड़े, नसे रोग के शिकार में आ जाती हैं। तब यह यंत्र चिकित्सकों को सहायता प्रदान करती है। इससे ध्वनि तेज सुनाई पड़ती है। जिससे चिकित्सक पता करते हैं कि ध्वनि नियमित है या अनियमित है। यदि ध्वनि अनियमित हुई तो वह व्यक्ति किसी रोग के शिकार में आ गया है। उस रोक को मध्य नजर रखते हुए आते चिकित्सक उसकी जांच करते हैं।
इस के आविष्कारक कौन थे तथा इसका आविष्कार कहां और कब हुआ था?
क्या आप जानते हैं डॉक्टरों द्वारा प्रयोग कर रहे हैं आला का आविष्कार कब और कहां हुआ था तो बता दें कि इसका आविष्कार 1819 ई को फ्रांस में हुआ था तथा इसे रेते लैनेक नाम के एक चिकित्सक ने बनाया था। धीरे-धीरे यह आविष्कार अमेरिका यूरोप होते-होते देश भर में फैल गई। इसका पूर्ण रूप से उपयोग होने लगा है।
स्थाॅस्कोप कितनी तरह की होती हैं?
स्थाॅस्कोप दो तरह की होती है।
- स्थाॅस्कोप
- डिजिटल स्थाॅस्कोप
स्थाॅस्कोप:-
यह सामान्य आल्हा यंत्र है जो अक्सर हम चिकित्सकों व डॉक्टर के पास देखते हैं। इसे कानों में लगाकर ह्रदय के ध्वनि को सुनते हैं।
डिजिटल स्थाॅस्कोप: –
यह यंत्र काफी महंगी आती है। तथा इसे कानों में लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। इसमें हो रहे कार्य को कंप्यूटर स्क्रीन पर देखा जा सकता है।
इसमें कितने उपकरण होते हैं?
जैसा कि पहले हमने पढ़ा इसे द्वीकर्णीय भी कहते हैं। इससे यह स्पष्ट रूप से पता चलता है कि इसके 2 भाग होते हैं। पहला भाग जो घंटी जैसी दिखाई पड़ती है उसे वक्षखंड कहते हैं। इसे रोगी के ह्रदय मे रखा जाता है ताकि चिकित्सक उसकी ध्वनि को सुन सके। तथा दूसरा भाग जो चिकित्सकों के कानों में लगी होती है। यह रब्बर की बनी होती है और इससे कर्णखंड कहते हैं। इसे चिकित्सक अपने कानों में लगाकर ही ध्वनियों को सुन पाते हैं तथा नियमित व अनियमित ध्वनि का पता लगा पाते हैं।
स्थाॅस्कोप कैसे काम करती है?
हम सब यह जानते हैं कि किस स्थाॅस्कोप से ध्वनियों को सुनी जाती हैं। परंतु क्या यह पता है की यह ध्वनि हमारे कानों तक पहुंचती कैसे हैं? तो आइए बताते हैं कि स्थाॅस्कोप के द्वारा हम ध्वनियों को कैसे सुन पाते हैं। जब हम घंटी जैसी दिखने वाली वक्षखंड को रोगी के ह्रदय में लगाते हैं तब वहां पर उत्पन्न होने वाली ध्वनि रबड़ के ट्यूब में वाइब्रेट करती हैं वह बाहर नही निकल पाती और हमारे कानों तक पहुंचती है। यही डिजिटल स्थाॅस्कोप मे यह आवाज कानो की जगह कम्प्यूटर की मे जाती है।और इस आवाज की फ़ोटो काॅपी निकाल दी जाती है।
स्थाॅस्कोप की किमत?
स्थाॅस्कोप 100 रूपए से लेकर 25,000 ताकि की आती है कम दाम वाले स्थाॅस्कोप से बीपी व सामान्य जाति होती हैं। परंतु महंगे स्थाॅस्कोप से हृदय के रोगी की जांच होती है। यहां ह्रदय चिकित्सकों द्वारा प्रयोग की जाती है।
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